
Subscribe to our
किडनी संक्रमण एक गंभीर बैक्टीरियल संक्रमण होता है जो यूरि मार्ग के जरिए ऊपर बढ़ते हुए किडनी तक पहुंचता है। यह संक्रमण अधिकतर ई. कोलाई नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। महिलाओं में इसकी संभावना अधिक होती है। किडनी संक्रमण को हल्के में लेना गंभीर गलती होती है। अगर आप बार-बार यूटीआई से परेशान रहते हैं तो तुरंत नोएडा में सर्वश्रेष्ठ हॉस्पिटल से संपर्क करें और साथ ही अपना व अपने परिवारजन का ध्यान रखें।
अपॉइंटमेंट शेड्यूल करने के लिए, अभी कॉल करें: +91 9667064100.
किडनी संक्रमण के जांच और निदान (Tests and Diagnosis of Kidney Infection)
किडनी संक्रमण को लेकर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs about Kidney Infection)
किडनी संक्रमण एक गंभीर बैक्टीरियल संक्रमण है जो मूत्र प्रणाली से शुरू होकर ऊपर की ओर बढ़ते हुए गुर्दों तक पहुंच जाता है। इसे चिकित्सा भाषा में पायलोनेफ्राइटिस (pyelonephritis) कहा जाता है। यह संक्रमण यह संक्रमण आमतौर मूत्रमार्ग, मूत्राशय, मूत्रनली, गुर्दे में होता है। संक्रमण नीचे से ऊपर की ओर बढ़ते हुए गुर्दों को संक्रमित कर देता है। अगर समय पर इलाज न हो तो यह गुर्दे को स्थायी क्षति पहुंचा सकता है। गंभीर मामलों में संक्रमण रक्त प्रवाह में फैल सकता है, जो जानलेवा हो सकता है।
किडनी संक्रमण को चिकित्सा विज्ञान में तीन प्रमुख श्रेणियों में बांटा जाता है। तीव्र पायलोनेफ्राइटिस, क्रॉनिक पायलोनेफ्राइटिस और किडनी ऐब्सेस।
पायलोनेफ्राइटिस जो एक तीव्र बैक्टीरियल संक्रमण होता है। आमतौर पर निचले मूत्र मार्ग (जैसे मूत्राशय) से ऊपर चढ़कर किडनी तक पहुंचता है।
क्रॉनिक पायलोनेफ्राइटिस जो लंबे समय तक या बार-बार होने वाले संक्रमण का परिणाम होता है। यह अक्सर उन लोगों में देखा जाता है जिन्हें बार-बार यूटीआई होता है या जिनकी मूत्र नली में कोई जन्मजात खराबी या रुकावट होती है।
किडनी ऐब्सेस जिसे 'जटिल पायलोनेफ्राइटिस भी कहा जाता है। यह तब होता है जब किडनी में संक्रमण इतना गंभीर हो जाता है कि उसमें मवाद भर जाता है और फोड़ा बन जाता है।
किडनी संक्रमण मुख्यत बैक्टीरिया के कारण होता है, जो आमतौर पर मूत्रमार्ग से होकर ऊपर की ओर बढ़ते हुए मूत्राशय से गुजरते हुए किडनी तक पहुंचता है।
जब किसी व्यक्ति को बार-बार मूत्र मार्ग संक्रमण (यूटीआई) होता है, तो यह संक्रमण बार-बार ऊपर की ओर बढ़कर किडनी तक पहुंचता है। वहां सूजन या पायलोनेफ्राइटिस जैसी स्थिति उत्पन्न कर सकता है।
यूरिन के प्रवाह में किसी भी प्रकार की रुकावट जैसे मूत्र में पथरी, मूत्रनली या मूत्राशय में ट्यूमर या पुरुषों में बढ़ा हुआ प्रोस्टेट ग्रंथि संक्रमण के जोखिम को बढ़ाते हैं। जब मूत्र पूरी तरह से बाहर नहीं निकल पाता, तो उसमें बैक्टीरिया पनपने लगते हैं जो बाद में किडनी तक पहुंच सकते हैं।
डायबिटीज जैसी बीमारियां भी संक्रमण के प्रमुख कारणों में से एक हैं, क्योंकि इसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। जिससे संक्रमण जल्दी फैलता है और गंभीर रूप ले सकता है। इसी तरह एचआईवी, कीमोथेरेपी, या स्टेरॉइड जैसी दवाएं लेने वाले मरीजों में भी इम्युनिटी कम होने के कारण किडनी संक्रमण का जोखिम अधिक होता है।
महिलाओं में किडनी संक्रमण की संभावना पुरुषों की तुलना में अधिक होती है। इसका मुख्य कारण उनकी जननांगीय संरचना होती है। महिलाओं का यूरिन मार्ग छोटा होता है और गुदा के पास स्थित होता है। जिससे बैक्टीरिया आसानी से मूत्रमार्ग में प्रवेश करते हैं और तेजी से ऊपर की ओर संक्रमण फैलाते हैं। गर्भावस्था के दौरान भी हार्मोनल बदलाव और बढ़ता हुआ गर्भाशय मूत्र प्रवाह को बाधित करता है।
इस प्रकार किडनी संक्रमण केवल एक साधारण समस्या नहीं है। बल्कि यह शरीर की रचना, रोग प्रतिरोधक क्षमता और यूरिन प्रणाली की कार्यप्रणाली पर निर्भर करता है। समय पर कारणों की पहचान और उनका समाधान आवश्यक है। जिससे संक्रमण से बचा जा सके या उसकी जटिलताओं को रोका जा सके।
किडनी संक्रमण के लक्षण संक्रमण की गंभीरता, रोगी की उम्र और उनकी स्वास्थ्य स्थिति के अनुसार भिन्न हो सकते हैं।
तेज बुखार (High fever) जो अचानक आता है और उसके साथ ठंड लगना भी होता है। यह शरीर में बैक्टीरिया के प्रसार का संकेत हो सकता है।
कमर या पीठ के निचले हिस्से में दर्द होता है, जो आमतौर पर प्रभावित किडनी की ओर एकतरफा महसूस होता है।
मरीजों को पेशाब करते समय जलन या दर्द की शिकायत होती है और बार-बार पेशाब आने की भावना बनी रहती है। भले ही बहुत कम मात्रा में मूत्र निकले।
कई बार पेशाब में बदबू आती है या वह मटमैला हो जाता है और कुछ मामलों में पेशाब में मवाद या रक्त भी दिखाई देता है।
संक्रमण के कारण रोगी को मतली, उल्टी या भूख में कमी जैसी सामान्य लक्षण भी हो सकते हैं।
मरीज बुजुर्ग हैं या डायबिटीज से पीड़ित हैं, तो उनमें संक्रमण के लक्षण हमेशा स्पष्ट नहीं होते। उनके मामले में भ्रम, मानसिक कमजोरी या अत्यधिक थकान जैसे लक्षण ज्यादा दिखाई देते हैं।
किडनी संक्रमण की पुष्टि के लिए डॉक्टर सबसे पहले मरीज के लक्षणों का मूल्यांकन करते हैं और फिर चरणबद्ध रूप से विभिन्न जांचें कराते हैं।
पेशाब की जांच में मौजूद बैक्टीरिया, मवाद कोशिकाएं, रक्त या संक्रमण के अन्य संकेत पहचाने जाते हैं। यूरीन कल्चर से यह भी पता चलता है कि संक्रमण किस बैक्टीरिया से हुआ है।
रक्त जांच की जाती है, जिसमें सीबीसी (सीबीसी) से शरीर में संक्रमण की गंभीरता का अनुमान लगाया जाता है, और क्रिएटिनिन जैसी जांचों से किडनी की कार्यक्षमता की स्थिति जानी जाती है।
मरीज को तेज और लगातार बुखार हो। कमजोरी बढ़ रही हो या डॉक्टर को सेप्सिस का संदेह हो तो ब्लड कल्चर कराना जरूरी हो ता है। इससे यह पता चलता है कि क्या बैक्टीरिया रक्त में प्रवेश किया है कि नहींं।
संक्रमण की जटिलता या यूरिन मार्ग में किसी अवरोध जैसे पथरी, सूजन, फोड़ा आदि का संदेह होने पर अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन जैसे इमेजिंग टेस्ट कराए जाते हैं।
बच्चों में या लंबे समय से बार-बार संक्रमण झेल रहे मरीजों में डॉक्टर डीएमएसए स्कैन करवाने की सलाह दे सकते हैं। यह एक विशेष न्यूक्लियर स्कैन होता है, जो यह बताता है कि किडनी का कौन-सा हिस्सा कार्य कर रहा है और किस हिस्से को स्थायी नुकसान पहुंचा है।
किडनी संक्रमण एक गंभीर स्थिति बन सकता है यदि समय पर न रोका जाए, लेकिन अच्छी जीवनशैली और स्वच्छता अपनाकर इसे काफी हद तक रोका जा सकता है।
दिनभर में कम से कम 2 से 3 लीटर पानी पीना मूत्र प्रणाली को साफ रखने और बैक्टीरिया को बाहर निकालने में मदद करता है।
यूरिन को लंबे समय तक रोकना भी संक्रमण का कारण बन सकता है। इसलिए जब भी पेशाब आए, तुरंत त्याग करना चाहिए।
स्वच्छता का ध्यान रखना भी बेहद जरूरी है, खासकर महिलाओं के लिए। शौच के बाद सफाई रखनी चाहिए। जिससे मल में मौजूद बैक्टीरिया मूत्र मार्ग में प्रवेश न कर सकें।
यौन संबंध के पहले और बाद में सफाई रखने और पेशाब करने से भी संक्रमण का खतरा कम हो जाता है।
अगर बार-बार यूटीआई से पीड़ित रहते हैं, उन्हें डॉक्टर से परामर्श लेकर प्रोफाइलेक्टिक एंटीबायोटिक या अन्य रोकथाम उपाय अपनाने चाहिए।
किसी को डायबिटीज, पथरी या प्रोस्टेट की समस्या है, तो इन स्थितियों को नियंत्रित रखना किडनी को संक्रमण से बचाने के लिए जरूरी है।
सार्वजनिक शौचालयों का सुरक्षित उपयोग, तंग अंडरगारमेंट से परहेज और सूती वस्त्रों का प्रयोग भी संक्रमण को दूर रखने में सहायक हो सकते हैं।
महिलाओं को विशेष रूप से मासिक धर्म के दौरान साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए और लंबे समय तक सैनिटरी नैपकिन या टैंपॉन का उपयोग नहीं करना चाहिए।
बच्चों, बुज़ुर्गों और कमजोर प्रतिरक्षा वाले लोगों की नियमित जांच और सावधानीपूर्वक देखभाल आवश्यक है, क्योंकि इनमें संक्रमण के लक्षण हमेशा स्पष्ट नहीं होते।
गर्भवती महिलाओं को समय-समय पर यूरिन की जांच करानी चाहिए क्योंकि गर्भावस्था के दौरान संक्रमण का खतरा अधिक होता है।
किडनी संक्रमण का इलाज संक्रमण की गंभीरता, मरीज की स्वास्थ्य स्थिति, और संक्रमण के कारण बैक्टीरिया की पहचान पर आधारित होता है।
एंटीबायोटिक थैरेपी जो डॉक्टर द्वारा पेशाब की जांच और यूरीन कल्चर के आधार पर तय की जाती है। अगर संक्रमण हल्का हो और मरीज को कोई अन्य गंभीर रोग न हो, तो ओरल एंटीबायोटिक (खाने वाली दवाएं) 7 से 14 दिनों तक दी जाती हैं।
अगर मरीज को तेज बुखार, उल्टी, कमजोरी, पेशाब में मवाद या रक्त, या सेप्सिस जैसे लक्षण हों, तो उसे अस्पताल में भर्ती करना आवश्यक हो सकता है। इसमें एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं ताकि दवा जल्दी और प्रभावी रूप से शरीर में असर कर सके। मरीज को इंट्रावेनस फ्लूइड्स भी दिए जाते हैं।
कई मामलों में संक्रमण के पीछे का कारण सिर्फ बैक्टीरिया नहीं होता। बल्कि यूरिन मार्ग में रुकावट जैसे पथरी, ट्यूमर या बढ़ा हुआ प्रोस्टेट भी होता है। ऐसी स्थिति में केवल दवा से इलाज नहीं होगा, बल्कि उस अवरोध को दूर करना भी जरूरी होगा। इसके लिए एंडोस्कोपी, कैथेटर या सर्जरी की जाती हैं।
नोएडा में किडनी संक्रमण के इलाज (kidney infection treatment in noida) की कीमत मरीज की स्थिति और अस्पताल के अनुसार बदलती है। यदि मरीज की हालत सामान्य है और उसे केवल ओपीडी में दवाएं व जांच की जरूरत है, तो इलाज का कुल खर्च लगभग तीन हजार रुपये से आठ हजार रुपये तक हो सकता है। इसमें डॉक्टर की फीस, ब्लड व यूरिन जांच, अल्ट्रासाउंड तथा दवाएं शामिल होती हैं। डायलिसिस या आईवी एंटीबायोटिक की जरूरत हो तो प्रति सेशन खर्च लगभग डेढ़ हजार से तीन हजार रुपये तक होता है। बीमा या मेडिक्लेम सुविधा होने पर ये खर्च कम हो सकते हैं।
अगर किडनी में मवाद का फोड़ा बन गया हो, तो उसका ड्रेनेज जरूरी हो जाता है। यह प्रक्रिया सर्जिकल या रेडियोलॉजिकल तरीके से की जाती है। क्रॉनिक पायलोनेफ्राइटिस से पीड़ित मरीजों को लंबे समय तक दवा, जांच और निगरानी में रखा जाता है।
डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और पुरानी किडनी बीमारी से जूझ रहे मरीजों को इलाज के दौरान विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है, क्योंकि उनमें संक्रमण तेजी से फैल सकता है। गर्भवती महिलाओं, बच्चों और बुज़ुर्गों में भी इलाज की रणनीति थोड़ी अलग और सावधानीपूर्वक बनाई जाती है।
किडनी में संक्रमण होने पर डॉक्टर से मिलने में देरी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यह संक्रमण तेजी से बढ़कर किडनी फेल्योर जैसी गंभीर स्थिति बना सकता है। विशेष रूप से गर्भवती महिलाएं, बच्चे, और क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD) से ग्रस्त मरीजों को संक्रमण के लक्षण जैसे बुखार, कमर या पीठ में दर्द, पेशाब में जलन या बदबू, आदि दिखते ही तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।
यदि आप या आपके किसी परिचित को इस तरह की समस्या है, तो तुरंत किसी नोएडा में अच्छे नेफ्रोलॉजिस्ट से संपर्क करें। नोएडा के प्रमुख अस्पतालों में अनुभवी नेफ्रोलॉजिस्ट उपलब्ध हैं जो सटीक जांच और प्रभावी इलाज प्रदान करते हैं।
अभी अपॉइंटमेंट शेड्यूल करें – कॉल करें: +91 9667064100.
किडनी संक्रमण को कई बार लोग इसे साधारण यूरिन संक्रमण समझकर नजरअंदाज करते हैं या केवल घरेलू उपायों पर निर्भर रहते हैं। जिससे स्थिति बिगड़ती है। यह समझना जरूरी है कि किडनी शरीर के महत्वपूर्ण अंगों में से एक है और संक्रमण यदि किडनी तक पहुंच जाए तो यह उसे स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त कर सकता है। इसलिए समय पर डॉक्टर से परामर्श लेना, जांच कराना और पूरा इलाज करवाना जरूरी है। हाई रिस्क ग्रुप जैसे डायबिटिक मरीज, गर्भवती महिलाएं, बच्चे या बार-बार यूटीआई से पीड़ित व्यक्ति नियमित चेकअप करवाते रहना चाहिए।
सवाल 1: किडनी संक्रमण और सामान्य यूटीआई में क्या अंतर है?
जवाब: सामान्य यूटीआई यूरिन मार्ग या मूत्राशय तक सीमित होता है। जबकि किडनी संक्रमण (पायलोनेफ्राइटिस) मूत्र मार्ग से ऊपर चढ़कर किडनी तक पहुंच जाता है।
सवाल 2: क्या किडनी संक्रमण केवल महिलाओं को होता है?
जवाब: पुरुषों को भी होता है। हालांकि महिलाओं का यूरिन मार्ग छोटा होता है और गुदा के पास होता है। इसलिए उनमें संक्रमण की संभावना अधिक होती है।
सवाल 3: क्या किडनी संक्रमण का घरेलू इलाज संभव है?
जवाब: यह एक गंभीर संक्रमण है जिसका इलाज केवल एंटीबायोटिक और चिकित्सकीय निगरानी से संभव है। घरेलू उपाय केवल सहायक हो सकते हैं। विकल्प नहीं।
सवाल 4: क्या बार-बार होने वाला यूटीआई किडनी को नुकसान पहुंचाता है?
जवाब: बार-बार होने वाला यूटीआई अगर सही तरीके से इलाज न किया जाए तो संक्रमण किडनी तक पहुंचता है और क्रॉनिक पायलोनेफ्राइटिस का कारण बनता है।
सवाल 5: क्या किडनी संक्रमण से किडनी फेल होती है?
जवाब: अगर संक्रमण का समय पर और सही इलाज न किया जाए। तो यह किडनी को स्थायी रूप से क्षति पहुंचाता है।जिससे क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) या किडनी फेल्योर होता है।
सवाल 6: क्या किडनी संक्रमण फैलता है ?
जवाब: यह संक्रामक बीमारी नहीं है और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता। लेकिन यदि कोई यूरिन संक्रमण की ओर लापरवाह है तो उसके शरीर में यह ऊपर बढ़कर किडनी तक पहुंचता है।