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हाथों और पैरों में झुनझुनी या सुन्नपन का अनुभव आम है। जिसे अक्सर लोग अनदेखा कर देते हैं। मगर यह संकेत है कि शरीर में कहीं नसें प्रभावित हो रही हैं। जरूरी नहीं कि इसकी वजह केवल न्यूरोलॉजिकल (तंत्रिका) समस्या हो। इसलिए समय रहते ध्यान देना जरूरी होता है। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि कैसे यह लक्षण केवल नसों की कमजोरी नहीं, बल्कि रूमेटोलॉजिकल यानी जोड़ों और प्रतिरक्षा संबंधी रोगों से भी जुड़े होते हैं। समय रहते सही लक्षण पहचान लेना साथ ही अच्छे रूमेटोलॉजी हॉस्पिटल (Best Rheumatology Hospital) से इलाज आवश्यक है।
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झुनझुनी और सुन्नपन के सामान्य कारणों में तंत्रिका क्षति, तंत्रिका संपीड़न और कुछ स्वास्थ्य स्थितियां शामिल है। यह लक्षण एक विशेष तंत्रिका की क्षति या कई तंत्रिकाओं को प्रभावित करने वाली समस्याओं के कारण भी होते हैं जो निम्न है
यह एक ऑटोइम्यून रोग है। जिस कारण जोड़ों में सूजन होती है। जब सूजनग्रस्त जोड़ नसों पर दबाव डालते हैं, तो झुनझुनी और सुन्नपन के लक्षण दिखते हैं। खासकर हाथों में दिखते हैं।
ल्यूपस में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली खुद की नसों पर हमला करती है। इससे नसों में सूजन, क्षति या संवेदनशीलता की कमी होती है। जिस कारण हाथ-पैर सुन्न या झुनझुनी युक्त महसूस होते हैं।
इस रोग में शरीर की ग्रंथियां (ग्लैंड्स) प्रभावित होती हैं। नसों की परिधीय क्षति होती है। इस कारण हाथों-पैरों में झुनझुनी, जलन और हल्का दर्द होता है।
यह रक्त वाहिकाओं की सूजन है। जिस कारण नसों को रक्त आपूर्ति कम होती है। इस कारण नसें क्षतिग्रस्त होती हैं। झुनझुनी या सुन्नपन का अनुभव होता है।
इसमें शरीर के विभिन्न अंगों में सूजन आती है, और नसें भी प्रभावित हो सकती हैं। विशेष रूप से चेहरे, हाथ या पैरों में झुनझुनी या कमजोरी का अनुभव होता है।
40 वर्ष से ऊपर के लोगों में यह समस्या ज्यादा सामान्य है। क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ नसें कमजोर होती हैं। अन्य रोग जैसे डायबिटीज, थायरॉइड) की संभावना बढ़ती है। कम उम्र के लोग भी प्रभावित होते हैं। खासकर जो लंबे समय तक लैपटॉप/मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं। जो विटामिन्स की कमी से जूझते हैं। अत्यधिक मानसिक तनाव या नींद की कमी में होती है।
यह लोग होते हां ज्यादा प्रभावितः
बुजुर्गों की उम्र के साथ नसें कमजोर होती हैं। डायबिटीज, विटामिन बी12 की कमी, आर्थराइटिस, थायरॉइड, रक्त संचार की कमी होती हैं। इस कारम पुरानी बीमारियों उभरने से समस्या बढ़ती है।
दूसरे नंबर पर प्रभावित वर्ग महिलाएं होती है। उनमें विटामिन बी12, आयरन और कैल्शियम की कमी होती है। हार्मोनल बदलाव नसों को प्रभावित करते हैं। कार्पल टनल सिंड्रोम महिलाओं में पुरुषों की तुलना में ज़्यादा होता है। गर्भावस्था में झुनझुनी आम है। खासकर पैरों में नसों पर दबाव के कारण।
पुरुष अगर शराब का सेवन ज्यादा करते हैं। डायबिटीज नियंत्रण में न हो, तो यह समस्या होती है। लंबे समय तक फिजिकल वर्क या गलत पोस्चर, जैसे झुककर काम करना भी नसों पर असर डालता है।
जब कोई रूमेटोलॉजिकल बीमारी नसों को प्रभावित करती है, तो झुनझुनी या सुन्नपन केवल सतही लक्षण नहीं होता, बल्कि यह भीतर चल रही सूजन या तंत्रिका क्षति का संकेत होता है। ऐसे मामलों में रूमेटोलॉजिस्ट से परामर्श लेना आवश्यक होता है।
हाथों और पैरों में झुनझुनी और सुन्नपन के पीछे रूमेटोलॉजिकल कारणों की पुष्टि करने के लिए चिकित्सक एक विस्तृत और व्यवस्थित प्रक्रिया अपनाते हैं। इसमें शारीरिक परीक्षण, खून की जांच, तंत्रिका परीक्षण और इमेजिंग तकनीकों का उपयोग शामिल हैं।
चिकित्सक मरीज के हाथों और पैरों की गति, कमजोरी, संवेदनशीलता और सूजन की जांच करते हैं। इस परीक्षण से यह पता चलता है कि किस हद तक नसें प्रभावित हुई हैं। क्या जोड़ों या तंत्रिका तंत्र में कोई समस्या है। इसमें देखा जाता है कि तंत्रिका प्रणाली कितनी प्रभावित हुई है। यानी मांसपेशियों में कमजोरी या संवेदनशीलता में कमी आ रही है क्या।
खून की जांच से रूमेटोलॉजिकल स्थितियों का पता लगाया जा सकता है। एएनए (एंटीन्यूक्लियर एंटीबॉडी) परीक्षण ऑटोइम्यून बीमारियों जैसे सिस्टमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस (एसएलई) के लिए होता है। आरएफ (रुमेटॉयड फैक्टर) टेस्ट रूमेटॉइड आर्थराइटिस के संकेतकों को पहचानने में मदद करता है। सीसीपी विरोधी टेस्ट रूमेटॉइड आर्थराइटिस की पुष्टि करने के लिए जरूरी होता है।
ईएमजी (इलेक्ट्रोमायोग्राफी) परीक्षण में मांसपेशियों और नसों की कार्यक्षमता का आकलन करते हैं। एनसीवी (तंत्रिका चालन वेग परीक्षण नसों में सिग्नल की गति को मापता है। जिस कारण नसों की क्षति का स्तर और उसकी गंभीरता का पता चलता है। यह परीक्षण विशेष रूप से तब किया जाता है जब नसों के दबाव या संकुचन का संदेह हो।
जब नसों पर दबाव या सूजन का संदेह होता है तो एमआरई या सीटी स्कैन से पता लगाते हैं कि समस्या कहां है। वह कितनी गंभीर है। एमआरई/सीटी स्कैन रीढ़ की हड्डी, जोड़ों या नसों के आसपास के क्षेत्रों की स्थिति की जांच करने में मदद करता है। जैसे कि कार्पल टनल सिंड्रोम, सियाटिका और हर्नियेटेड डिस्क जैसी स्थितियों में
रूमेटोलॉजिकल कारणों से होने वाली झुनझुनी और सुन्नपन का इलाज एक बहुआयामी प्रक्रिया है। जिसमें दवाओं से लेकर जीवनशैली में बदलाव तक के उपाय शामिल हैं। इसका उद्देश्य नसों पर दबाव कम करना, सूजन को नियंत्रित करना और जोड़ों की गति को बेहतर बनाना है।
यह दवाएं रूमेटोलॉजिकल रोगों जैसे रूमेटॉइड आर्थराइटिस में सूजन और दर्द को कम करती हैं।ये रोग की गति को धीमा करने में मदद करती हैं, जिससे नसों पर दबाव भी कम होता है।
तीव्र सूजन और दर्द को नियंत्रित करने के लिए स्टेरॉयड्स का उपयोग करते हैं। यह विशेष रूप से तब उपयोगी होते हैं। जब सूजन बहुत ज्यादा होती है। यानि जब त्वरित राहत की आवश्यकता होती है।
यह दवाएं सूजन और हल्के से मध्यम दर्द को कम करने में मदद करती हैं। यह नॉन-स्टेरॉयड सूजनरोधी दवाएं हैं। जो जोड़ों में सूजन और दर्द को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी होती हैं।
फिजियोथेरेपी मांसपेशियों और जोड़ों की गति को बढ़ाने में मदद करती है, जिससे नसों पर दबाव कम होता है और जोड़ों की लचीलापन बनी रहती है।
फिजियोथेरेपी, स्ट्रेचिंग और मांसपेशियों की मजबूत करने वाली तकनीकों के माध्यम से, नसों पर दबाव को कम करने और चलने-फिरने की क्षमता को सुधारने में सहायक होती है। यह उपचार विशेष रूप से कार्पल टनल सिंड्रोम या सियाटिका जैसी स्थितियों में उपयोगी होता है।
अगर शरीर में विटामिन B12 की कमी होती है, तो यह नसों की कार्यप्रणाली को बाधित करता है। इस कमी को पूरा करने के लिए विटामिन B12 सप्लिमेंट्स मददगार होते हैं। विटामिन डी, कैल्शियम, और मैग्नीशियम जैसे तत्व नसों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होते हैं। इनकी कमी से नसों पर दबाव बढ़ता है। जिससे झुनझुनी और सुन्नपन की समस्या होती है।
योग, स्ट्रेचिंग, और हल्के कार्डियो व्यायाम नसों और जोड़ों की सक्रियता बनाए रखने में मदद करते हैं। ये व्यायाम नसों पर दबाव कम करने और रक्त परिसंचरण को बेहतर बनाने में सहायक होते हैं।
एक पोषण से भरपूर आहार रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और शरीर के वजन को नियंत्रित रखने में मदद करता है। एक स्वस्थ आहार शरीर की सूजन को कम करने में भी मदद करता है, जो झुनझुनी और सुन्नपन को बढ़ाती है।
यदि नसों पर अत्यधिक दबाव हो और दवाओं से राहत न मिले, तो शल्य चिकित्सा की आवश्यकता हो सकती है। कार्पल टनल रिलीज़ सर्जरी या नसों की डीकंप्रेशन प्रक्रिया विशेष रूप से कार्पल टनल सिंड्रोम और सियाटिका जैसी स्थितियों में की जा सकती है। ये प्रक्रियाएँ नसों के दबाव को कम करने के लिए उपयोग की जाती हैं, ताकि सूजन और दर्द को नियंत्रित किया जा सके।
रूमेटोलॉजिस्ट एक चिकित्सा विशेषज्ञ होता है जो रूमेटोलॉजिकल और ऑटोइम्यून बीमारियों का निदान, उपचार और प्रबंधन करता है। वे विशेष रूप से उन बीमारियों में प्रशिक्षित होते हैं जो जोड़ों, मांसपेशियों, हड्डियों, और संयोजी ऊतकों को प्रभावित करती हैं। फेलिक्स हॉस्पिटल्स की रूमेटोलॉजिस्ट डॉ. किरण सेठ 20 साल से ज्यादा का तजुर्बा रखती है और रूमेटोलॉजिकल और ऑटोइम्यून बीमारियों का निदान बेहतरीन तरीके से कर लेती हैं साथ ही ऑनलाइन परामर्श भी उपलब्ध है।
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हाथ-पैरों में झुनझुनी या सुन्नपन एक आम लक्षण भले ही लगे, लेकिन इसके पीछे गंभीर रूमेटोलॉजिकल कारण होते हैं। इन्हें नजरअंदाज करना भविष्य में नसों और जोड़ों को स्थायी क्षति पहुंचता है। अगर लक्षण लगातार बने रहें या इनके साथ जोड़ों में सूजन, थकान, दर्द या त्वचा संबंधी समस्या भी दिखें तो यह साफ संकेत होता है कि शरीर में कोई रूमेटिक रोग सक्रिय है। समय पर जांच और विशेषज्ञ से परामर्श लेना, न केवल सही निदान में मदद करता है, बल्कि जटिलताओं से भी बचाता है।
प्रश्न 1. क्या हाथ-पैरों में झुनझुनी हमेशा नसों की बीमारी का संकेत है ?
उत्तरः झुनझुनी कई कारणों से होती है। यह नसों की समस्या, विटामिन की कमी, मधुमेह, थायरॉयड विकार या किसी रूमेटिक रोग का लक्षण होता है।
प्रश्न 2. झुनझुनी और सुन्नपन रूमेटोलॉजिकल बीमारियों से कैसे जुड़ा है ?
उत्तरः रूमेटिक रोगों जैसे रूमेटॉइड आर्थराइटिस, ल्यूपस, वेस्कुलाइटिस आदि में सूजन नसों पर दबाव डाल सकती है। जिससे झुनझुनी या सुन्नपन महसूस होता है।
प्रश्न 3. किन परीक्षणों से यह पता चलता है कि झुनझुनी का कारण रूमेटिक है या नहीं ?
उत्तरः शारीरिक जांच के साथ-साथ खून की जांच (ANA, RF, Anti-CCP), EMG/NCV परीक्षण और MRI/CT स्कैन से स्थिति स्पष्ट होती है।
प्रश्न 4. क्या रूमेटोलॉजिकल झुनझुनी का इलाज संभव है ?
उत्तरः अगर समय पर सही निदान हो जाए तो दवाओं, फिजियोथेरेपी, सप्लिमेंट्स और जीवनशैली सुधार से राहत संभव है।
प्रश्न 5. क्या झुनझुनी की स्थिति में ऑपरेशन जरूरी होता है ?
उत्तरः केवल गंभीर मामलों में जब नसों पर अत्यधिक दबाव हो और अन्य उपचार विफल हों तब सर्जरी की जाती है।
प्रश्न 6. मुझे केवल थोड़ी-थोड़ी झुनझुनी होती है, क्या मुझे डॉक्टर को दिखाना चाहिए ?
उत्तरः अगर यह झुनझुनी बार-बार होती है। किसी अंग विशेष तक सीमित रहती है या अन्य लक्षणों के साथ जुड़ी है, तो परामर्श आवश्यक है।