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बार-बार बुखार और जोड़ों का दर्द वाकई में किसी गंभीर बीमारी का संकेतहैं। विशेषकर अगर यह लक्षण लंबे समय से हैं। यह लक्षण कई ऑटोइम्यून या रूमेटोलॉजिकल बीमारियों से जुड़े हो सकते हैं। जैसे सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस (एसएलई), रुमेटॉइड आर्थराइटिस (आरए), एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस, आदि। इसलिए इनके लक्षणों को हल्के में नहीं लेना चाहिए। समय रहते अच्छे रुमेटोलॉजी हॉस्पिटल (Best Rheumatology Hospital) से संपर्क करें। इस ब्लॉग में हम बार-बार बुखार के समय पर पहचान और सावधानियों की जानकारी दी जाएगी।
रूमेटोलॉजी में जोड़ों, मांसपेशियों, हड्डियों से संबंधित बीमारियों होती है। इसमें मुख्य रूप से ऑटोइम्यून बीमारियां होती हैं। जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से अपने ही ऊतकों पर हमला करती है। रुमेटॉइड आर्थराइटिस, सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस (एसएलई), एंकिलोज़िंग स्पॉन्डिलाइटिस, स्जोग्रेन सिंड्रोम, गाउट, फाइब्रोमायल्जिया, वेस्कुलाइटिस, जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस रूमेटोलॉजिकल बीमारियां है।
लगातार या बार-बार जोड़ों में दर्द और सूजन होना
सवेरे उठने पर जोड़ों में जकड़न होना
थकान और कमजोरी होना
बार-बार बुखार आना (बिना स्पष्ट संक्रमण के) होना
त्वचा पर चकत्ते या रैशेस होना
मांसपेशियों में दर्द या अकड़न होना
आंखों, मुंह या त्वचा में सूखापन होना
वजन में अचानक गिरावट होना
बार-बार बुखार आना और जोड़ों में दर्द महसूस होना कई प्रकार की स्वास्थ्य स्थितियों का संकेत है। यह क्षण सामान्य संक्रमण के कारण होते हैं, लेकिन कई बार यह किसी गंभीर रूमेटोलॉजिकल या ऑटोइम्यून बीमारी से भी होते हैं। नीचे कुछ प्रमुख हैं:
यह एक ऑटोइम्यून रोग है। जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अपने ही जोड़ों पर हमला करती है। जोड़ों में लगातार सूजन और दर्द, सवेरे जोड़ों में जकड़न, हल्का बुखार, थकावट इसके लक्षण हैं।
ल्यूपस एक जटिल ऑटोइम्यून बीमारी है। जिसमें शरीर के कई अंग प्रभावित होते हैं। जैसे त्वचा, जोड़ों, किडनी, मस्तिष्क आदि। बार-बार बुखार, जोड़ों में दर्द और सूजन, चेहरे पर तितली-आकार का रैश, बाल झड़ना, थकावट और वजन घटना इसके लक्षण हैं।
यह आर्थराइटिस का प्रकार बच्चों में होता है। यह 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में लंबे समय तक जोड़ों में सूजन का कारण बनता है। बच्चों में बुखार, जोड़ों में सूजन और अकड़न, धीमी गति से वृद्धि, आंखों में सूजन (कुछ मामलों में), समय पर निदान और उपचार से बच्चों को सामान्य जीवन जीने में मदद मिलती है।
यह एक प्रकार की सूजन होती है जो शरीर में किसी संक्रमण के बाद होती है, खासकर यूरिनरी या गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल संक्रमण के बाद। एक या एक से अधिक जोड़ों में सूजन, हल्का बुखार, आंखों में जलन, यूरिन मार्ग में तकलीफ इसके लक्षण हैं।
इसके अंतर्गत अन्य कई बीमारियां आती हैं जैसे स्जोग्रेन सिंड्रोम, वेस्कुलाइटिस, सिस्टेमिक स्क्लेरोसिस आदि होती है। बार-बार बुखार, विभिन्न जोड़ों में दर्द, मांसपेशियों में अकड़न, अंगों में सूजन, त्वचा में परिवर्तन इसके लक्षण हैं।
वायरल बीमारियों में तेज बुखार और जोड़ों में असहनीय दर्द प्रमुख लक्षण होते हैं। उच्च बुखार, शरीर और जोड़ों में तेज दर्द, त्वचा पर चकत्ते या रैश, प्लेटलेट्स की कमी खासकर डेंगू में, कमजोरी जो कई हफ्तों तक रहती है।
यह आम लेकिन गंभीर संक्रमण हैं जो समय पर इलाज न होने पर जटिल होते हैं। बार-बार या चढ़ता-उतरता बुखार, शरीर में थकान और दर्द, भूख में कमी, सिरदर्द और पसीना, कभी-कभी उल्टी या दस्त इसके लक्षण हैं।
टीबी केवल फेफड़ों तक सीमित नहीं होती यह हड्डियों, जोड़ों, लिम्फ नोड्स, और यहां तक कि दिमाग पर भी असर डालती है। लंबे समय तक बना रहने वाला बुखार, वजन का तेजी से घटना, रात में पसीना, लगातार खांसी (अगर फेफड़ों में हो), शरीर में सूजन या दर्द इसके लक्षण हैं।
जब बार-बार बुखार और जोड़ों में दर्द जैसी समस्याएं लगातार बनी रहें समय पर निदान जरूरी हैं। जो बीमारी की जड़ तक पहुंचने में मदद करते हैं।
सीबीसी (पूर्ण रक्त गणना) से शरीर में संक्रमण या खून की कमी का पता चलता है। जब ईएसआर (एरिथ्रोसाइट अवसादन दर) शरीर में किसी प्रकार की सूजन का संकेत देता है। सीआरपी (सी-रिएक्टिव प्रोटीन) यानी तीव्र सूजन या संक्रमण की स्थिति में बढ़ता है। इन टेस्ट से यह पता लगा सकते हैं कि शरीर मेंसूजन या संक्रमण है की नहीं।
एएनए (एंटीन्यूक्लियर एंटीबॉडी टेस्ट) लूपस जैसी ऑटोइम्यून बीमारियों की पहचान में मदद करता है। आरए फैक्टर (रूमेटॉइड फैक्टर) रूमेटॉइड अर्थराइटिस के निदान में महत्वपूर्ण होता है। एलएफटी (लिवर फंक्शन टेस्ट) लीवर की सेहत जांचने के लिए होता है।केएफटी (किडनी फंक्शन टेस्ट) किडनी की कार्यक्षमता जानने के लिए होता है। ऑटोइम्यून या क्रॉनिक बीमारियों के मामले में यह जांच जरूरी होती हैं।
एक्स-रे हड्डियों और जोड़ों में सूजन या क्षति की स्थिति देखने के लिए होता है। अल्ट्रासाउंड आंतरिक अंगों की संरचना का मूल्यांकन करने के लिए होता है। एमआरआई मांसपेशियों, नसों और जोड़ों की गहराई से जांच के लिए होता है। अगर जोड़ों का दर्द लगातार बना है तो मूवमेंट सीमित होती है। तो यह इमेजिंग तकनीकें बहुत उपयोगी साबित होती हैं।
एनएस-1 और आईजीएम टेस्ट डेंगू की पुष्टि के लिए होता है। मलेरिया परजीवी जांच ब्लड स्मीयर या रैपिड टेस्ट द्वारा होती है। मंटौक्स टेस्ट / सीबीएनएएटी / चेस्ट एक्स-रे टीबी की पहचान के लिए होती है।
बार-बार बुखार और जोड़ों के दर्द का इलाज लक्षणों के आधार पर नहीं मूल वजह से होना चाहिए। इस समस्या से निपटने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं:
हर रोग का इलाज उसकी जड़ पर निर्भर करता है। इसलिए यह आवश्यक है कि पहले सही निदान हो और फिर उसी के अनुसार डॉक्टर द्वारा सुझाई गई दवाएं ली जाएं। संक्रमण होने पर एंटीबायोटिक या एंटीवायरल। ऑटोइम्यून रोगों में इम्यून-सप्रेसिंग दवाएं। सूजन और दर्द कम करने के लिए एनालजेसिक/एनएसएआईडी दवा ली जा सकती है। हालांकि स्वयं दवा न लें। डॉक्टर की सलाह हमेशा आवश्यक है।
पौष्टिक आहार जैसे ताजे फल, हरी सब्जियां, दालें और सूखे मेवे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। पर्याप्त पानी पीना और हाइड्रेशन बनाए रखना जरूरी होता है। रोजाना सात-आठ घंटे की नींद शरीर को रिकवरी करती है।
हल्दी, तुलसी, गिलोय, आंवला जैसे प्राकृतिक तत्वों का सेवन करना चाहिए। विटामिन सी, डी और जिंक जैसे सप्लीमेंट्स (डॉक्टर की सलाह से) लेना चाहिए। प्रदूषण और अत्यधिक थकावट से बचाव जरूरी होता है।
हल्की योगा, स्ट्रेचिंग या वॉक करने से जोड़ों की गतिशीलता बनी रहती है। दर्द कम भी होता है। शारीरिक सक्रियता इम्यून सिस्टम को भी मजबूत बनाती है।
तनाव भी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है। मेडिटेशन, प्राणायाम और रचनात्मक गतिविधियां मानसिक शांति देती हैं। समय पर ब्रेक और पर्याप्त आराम भी जरूरी होता है।
रूमेटोलॉजिस्ट एक चिकित्सा विशेषज्ञ होता है जो रूमेटोलॉजिकल और ऑटोइम्यून बीमारियों का निदान, उपचार और प्रबंधन करता है। वे विशेष रूप से उन बीमारियों में प्रशिक्षित होते हैं जो जोड़ों, मांसपेशियों, हड्डियों, और संयोजी ऊतकों को प्रभावित करती हैं। फेलिक्स हॉस्पिटल्स की रूमेटोलॉजिस्ट डॉ. किरण सेठ 20 साल से ज्यादा का तजुर्बा रखती है और रूमेटोलॉजिकल और ऑटोइम्यून बीमारियों का निदान बेहतरीन तरीके से कर लेती हैं।
जटिल जोड़ों के दर्द और सूजन के कारणों की गहराई से जांच करते हैं।
ऑटोइम्यून रोगों की पहचान (जैसे आरए, एसएलई स्क्लेरोडर्मा) जांच करते हैं।
विशेष रक्त परीक्षणों की व्याख्या (जैसे एएनए, आरएफ, एंटी-सीसीपी) जांच करते हैं।
रोग की गंभीरता का मूल्यांकन करना जांच करते हैं।
दीर्घकालिक दवाइयों की योजना बनाना (डीएमएआरडी, इम्यूनोमॉड्यूलेटर आदि) जांच करते हैं।
जीवनशैली में आवश्यक बदलावों की सलाह देना जांच करते हैं।
मरीज की स्थिति की निगरानी करना और इलाज में संशोधन करना जांच करते हैं।
बार-बार बुखार और जोड़ों का दर्द केवल थकान या मौसम का असर नहीं, बल्कि किसी गंभीर रूमेटोलॉजिकल बीमारी का संकेत होता है। इन लक्षणों को हल्के में लेना आगे चलकर स्थायी शारीरिक क्षति या जटिलताओं का कारण बनता है। रूमेटोलॉजिकल बीमारियां जितनी जल्दी पहचानी जाएं, उतनी ही बेहतर तरीके से उनका प्रबंधन किया जा सकता है। प्रारंभिक इलाज से न केवल दर्द और असुविधा को कम किया जाता है। बल्कि जीवन की गुणवत्ता को भी सुरक्षित रखा जाता है।
प्रश्न 1. क्या बार-बार बुखार और जोड़ों का दर्द रुमेटॉइड आर्थराइटिस (आरए) का संकेत है ?
उत्तरः बार-बार बुखार और जोड़ों का दर्द आरए का लक्षण होता है। खासकर यदि यह सुबह की जकड़न और जोड़ों की सूजन के साथ हो। विशेषज्ञ से जांच कराना आवश्यक है।
प्रश्न 2. क्या सभी जोड़ों के दर्द रूमेटोलॉजिकल बीमारी के कारण होते हैं ?
उत्तरः सभी जोड़ों के दर्द रूमेटोलॉजिकल कारणों से नहीं होते है। चोट, अधिक उपयोग, संक्रमण या विटामिन की कमी भी कारण भी होते हैं। अगर दर्द लगातार बना रहे या बुखार के साथ हो, तो रूमेटोलॉजिकल जांच कराना चाहिए।
प्रश्न 3. रूमेटोलॉजिकल बीमारी का इलाज पूरी तरह संभव है क्या ?
उत्तरः अधिकांश रूमेटोलॉजिकल बीमारियां दीर्घकालिक होती हैं। जिनका पूर्ण इलाज नहीं लेकिन प्रभावी प्रबंधन संभव है। सही दवाओं और नियमित फॉलोअप से व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकता है।
प्रश्न 4. कौन से टेस्ट रूमेटोलॉजिकल बीमारी की पुष्टि करते हैं ?
उत्तरः आर फैक्टर (गठिया का कारक), एएनए (एएनए - एंटीन्यूक्लियर एंटीबॉडी), सीआरपी और ईएसआर (सूजन जांचने के लिए), सी.सी.पी. विरोधी, एचएलए-बी27 (कुछ विशेष स्थितियों में) इनकी व्याख्या विशेषज्ञ द्वारा की जानी चाहिए।
प्रश्न 5. क्या रूमेटोलॉजिकल बीमारियां बच्चों में भी हो सकती हैं ?
उत्तरः बच्चों में जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस (जीआईए) जैसी स्थितियां पाई जाती हैं, जो बुखार और जोड़ों के दर्द के साथ प्रकट होती हैं। बच्चों में समय पर पहचान और इलाज बेहद जरूरी है।
प्रश्न 6. क्या घरेलू उपाय या डाइट से राहत मिल सकती है ?
उत्तरः एंटी-इंफ्लेमेटरी फूड, हल्दी, मछली का तेल) और हल्का व्यायाम सहायक होते हैं, लेकिन यह इलाज का विकल्प नहीं हैं। हमेशा डॉक्टर की सलाह लें।