पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर के लक्षण और इलाज (यूरोलॉजी)

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प्रोस्टेट पुरुषों में पाई जाने वाली ग्रंथि है। जो ब्लैडर के नीचे और मलाशय के सामने स्थित होती है। इस ग्रंथि से होकर यूरिनमार्ग गुजरता है जो यूरिन और वीर्य दोनों को बाहर निकालता है। प्रोस्टेट का मुख्य कार्य है वीर्य में तरल पदार्थ का निर्माण करना, जो शुक्राणुओं को पोषण और गतिशीलता प्रदान करता है। अगर आपको ऐसे कोई भी लक्षण दीखते है तो आप नोएडा में सर्वश्रेष्ठ हॉस्पिटल से संपर्क कर खुद को समय रहते ठीक कर सकते है। इस ब्लॉग में हम पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर (Prostate cancer) के लक्षण और इलाज के बारे में जानेंगे।


अगर आप भी इस समस्या के लक्षण महसूस कर रहे है, तो एक बार अच्छे यूरोलॉजिस्ट से सलाह अवश्य लें। हमे आज ही कॉल करें +91 9667064100

 

 

TABLE OF CONTENTS-

 


 

प्रोस्टेट कैंसर क्या है? (Prostate cancer kya hai in hindi)

प्रोस्टेट कैंसर पुरुषों में होने वाला कैंसर है। यह पुरुषों में पाई जाने वाली एक ग्रंथि प्रोस्टेट  में उत्पन्न होता है। यह आकार में अखरोट के समान होती है। जब प्रोस्टेट की कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़ती के बाद एक गांठ (ट्यूमर) का निर्माण करती हैं। इसी स्थिति को प्रोस्टेट कैंसर कहते है। प्रोस्टेट एक छोटी लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथि है जो मूत्राशय के नीचे और मलाशय (रेक्टम) के ठीक सामने स्थित होती है। इसी ग्रंथि के बीच से मूत्रमार्ग (यूरेथ्रा) गुजरता है, जो यूरिन और वीर्य दोनों को शरीर से बाहर निकालने का कार्य करता है। प्रोस्टेट ग्रंथि (Prostate Gland) का मुख्य कार्य वीर्य (सीमेन) में वह तरल पदार्थ बनाना है जो शुक्राणुओं को पोषण और गतिशीलता प्रदान करता है। यह पुरुष की प्रजनन क्षमता और यौन स्वास्थ्य में अहम भूमिका निभाता है। उम्र बढ़ने के साथ इस ग्रंथि का आकार बढ़ता है। इसे बिनाइन प्रोस्टेटिक हाइपरप्लासिया (बीपीएच) कहते हैं।

 


कैंसर कैसे और क्यों होता है?

शरीर की कोशिकाएं एक निश्चित क्रम और गति से विभाजित होने के बाद समय आने पर मरती हैं। मगर जब किसी कोशिका के डीएनए में कोई बदलाव हो, तब वह कोशिका नियंत्रण से बाहर हो जाती है। इस कारण वह न तो मरती है न विभाजित होती है , ऐसी कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़ती हैं। यही एकत्र होने के बाद ट्यूमर कारण बनती हैं। अगर कोशिकाएं आसपास के ऊतकों में प्रवेश करने लगें या रक्त और लसीका तंत्र के माध्यम से शरीर के अन्य भागों में फैल जाएं तो इसे कैंसर कहते हैं। प्रोस्टेट कैंसर में यही म्यूटेशन प्रोस्टेट ग्रंथि की कोशिकाओं में होता है जिससे यह रोग होता है।

 

कौन से पुरुष अधिक जोखिम में होते हैं?

प्रोस्टेट कैंसर से प्रभावित होने की संभावना कुछ विशेष कारकों के आधार पर बढ़ती है:

 

  • 50 वर्ष से ऊपर के पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर का खतरा ज्यादा होता है। यह बीमारी युवाओं की तुलना में वृद्ध पुरुषों में ज्यादा होती है।

  • अगर किसी पुरुष को प्रोस्टेट कैंसर हो चुका है, तो उस व्यक्ति में भी इसके होने की संभावना ज्यादा होती है।

  • अधिक वसायुक्त भोजन, मोटापा और व्यायाम की कमी प्रोस्टेट कैंसर का जोखिम बढ़ाती हैं। असंतुलित जीवनशैली से शरीर में हार्मोनल असंतुलन उत्पन्न करता है, जो इस बीमारी को जन्म देता है।

  • पुरुष हार्मोन टेस्टोस्टेरोन की अधिक मात्रा भी प्रोस्टेट कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ने में सहायक होती है।

  • ब्राका-2 म्यूटेशन यानी यह एक विशेष आनुवंशिक म्यूटेशन है जो किसी पुरुष में पाया जाए, तो उसमें प्रोस्टेट कैंसर का जोखिम अधिक होता है।

 


प्रोस्टेट कैंसर के लक्षण (Prostate cancer ke lakshan in hindi)

प्रोस्टेट कैंसर की शुरुआत अक्सर बिना लक्षण के होती है, लेकिन जैसे-जैसे यह बढ़ता है, कुछ शारीरिक संकेत दिखाई देने लगते हैं।

 

प्रारंभिक लक्षण:

  • बार-बार पेशाब आना यानी विशेष रूप से रात में बार-बार उठकर पेशाब जाना। 

  • धीमी यानी रुकी हुई पेशाब की धारा यानी पेशाब करने में समय लगना या धारा का रुक-रुककर आती है। 

  • पेशाब करते समय जलन व दर्द यानी सूजन या संक्रमण के कारण मूत्रमार्ग में जलन महसूस होती है।

 

गंभीर अवस्था के लक्षण:

  • मूत्र व वीर्य में खून आना व यह प्रोस्टेट ग्रंथि या मूत्रनली में सूजन या घाव का संकेत होता है।  

  • पीठ, कूल्हे या जांघों में लगातार दर्द यानी हड्डियों तक कैंसर फैलने का संकेत होता है। 

  • अचानक वजन कम होना और थकान व कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि शरीर की ऊर्जा को खर्च करती है।

 


प्रोस्टेट कैंसर का निदान (Prostate cancer ka nidaan in hindi)

प्रोस्टेट कैंसर की पुष्टि के लिए कई तरह की जांचें की जाती हैं, इनमें से कुछ शुरुआती स्क्रीनिंग के लिए होती हैं।


पीएसए टेस्ट (पीएसए - प्रोस्टेट-विशिष्ट एंटीजन टेस्ट):

यह एक ब्लड टेस्ट है जो खून में पीएसए नामक प्रोटीन की मात्रा को मापता है। पीएसए का उच्च स्तर प्रोस्टेट कैंसर, बीपीएच (सामान्य बढ़ी हुई ग्रंथि) या प्रोस्टेट संक्रमण का संकेत होता है। 


डीआरई (डिजिटल रेक्टल परीक्षा):

डॉक्टर दस्ताने पहनकर मलाशय के रास्ते से उंगली द्वारा प्रोस्टेट ग्रंथि को महसूस करते हैं। इसमें प्रोस्टेट का आकार, कठोरता, गांठ या असमानता का पता लगाते है। यह एक तेज और बिना तकनीक के मूल्यांकन का तरीका है।


ट्रांसरेक्टल अल्ट्रासाउंड (ट्रस)

प्रोस्टेट की सोनोग्राफी जो मलद्वार के माध्यम से की जाती है। इससे ग्रंथि के आकार और उसमें मौजूद किसी भी असामान्यता का पता चलता है। इसकी मदद से बायोप्सी भी की जाती है।


एमआरआई और सीटी स्कैनः

पीएसए या डीआरई में असामान्यता हो एमआरआई या सीटी स्कैन जांचें यह पता लगाने में मदद करती हैं कि ट्यूमर केवल प्रोस्टेट तक सीमित है या आसपास के ऊतकों में फैला है। विशेष रूप से मल्टीपैरामीट्रिक एमआरआई का प्रयोग अधिक सटीकता के लिए होता है।


प्रोस्टेट बायोप्सीः

ट्रस या एमआरआई गाइडेंस के माध्यम से सुई द्वारा प्रोस्टेट से ऊतक का नमूना लेते हैं। इसे लैब में जांच कर देखते हैं कि कैंसर कोशिकाएं मौजूद हैं या नहीं। ग्लीसन स्कोर के जरिए यह आंकते है कि कैंसर कितना आक्रामक है, बायोप्सी से प्रोस्टेट कैंसर की अंतिम पुष्टि होती है।

 

 

प्रोस्टेट कैंसर का स्टेज निर्धारण (Prostate cancer ka stage in hindi)

प्रोस्टेट कैंसर का इलाज तय करने से पहले यह जानना अत्यंत आवश्यक होता है कि कैंसर शरीर में किस स्तर तक फैला है। इसके लिए चिकित्सक मुख्य रूप से तीन प्रमुख मानकों का उपयोग करते हैं। टीएनएम स्टेजिंग प्रणाली, ग्लीसन स्कोर और यह आकलन कि कैंसर प्रोस्टेट तक सीमित है या शरीर के अन्य भागों तक फैल चुका है। टीएनएम स्टेजिंग प्रणाली एक अंतरराष्ट्रीय रूप से स्वीकृत पद्धति है जिसका उपयोग कैंसर के फैलाव की स्थिति को समझने के लिए किया जाता है। इसमें तीन घटक होते हैं — टी (ट्यूमर), एन (नोड्स) और एम (रूप-परिवर्तन)।

 

  • टी (ट्यूमर): दर्शाता है कि प्रोस्टेट ग्रंथि के भीतर कैंसर कितनी मात्रा में मौजूद है या कितना फैला है। टी 1 वह अवस्था है जब कैंसर बहुत छोटा होता है और सामान्य जांच (जैसे डीआरई या इमेजिंग) से पकड़ में नहीं आता, बल्कि केवल बायोप्सी द्वारा ही पहचाना जाता है। टी 2 वह स्थिति होती है जब कैंसर पूरी तरह प्रोस्टेट ग्रंथि तक ही सीमित रहता है। टी 3 में कैंसर प्रोस्टेट से बाहर निकल चुका होता है और सीमेन वेसिकल्स जैसे आस-पास के ऊतकों को प्रभावित करता है। टी 4 वह अवस्था है जब कैंसर मूत्राशय, मलाशय या अन्य समीपवर्ती अंगों में भी फैल चुका होता है।

 

  • एन (नोड्स): से यह पता चलता है कि क्या कैंसर लिम्फ नोड्स (Lymph nodes) तक फैला है या नहीं। एन 0 का अर्थ है कि कैंसर लिम्फ नोड्स में नहीं पहुंचा है। एन 1 बताता है कि कैंसर अब लिम्फ नोड्स में भी मौजूद है।

 

  • एम (रूप-परिवर्तन): यह दर्शाता है कि क्या कैंसर शरीर के दूरस्थ भागों में फैल गया है। एम 0 का तात्पर्य है कि कैंसर शरीर के अन्य भागों (जैसे हड्डियों, फेफड़ों) तक नहीं फैला है। एम 1 दर्शाता है कि कैंसर शरीर के दूरस्थ अंगों तक पहुंच चुका है।

     

  • इसी के साथ, ग्लीसन स्कोर प्रोस्टेट कैंसर की आक्रामकता को मापने के लिए उपयोग किया जाता है। यह स्कोर प्रोस्टेट बायोप्सी में देखी गई कैंसर कोशिकाओं के दो प्रमुख प्रकारों की ग्रेडिंग पर आधारित होता है: प्राथमिक और द्वितीयक। इन दोनों का जोड़ ही ग्लीसन स्कोर कहलाता है, जो सामान्यतः 2 से 10 के बीच होता है। यदि स्कोर 6 या उससे कम है तो इसे धीमी गति वाला या निम्न ग्रेड कैंसर माना जाता है। 7 का स्कोर मध्यम जोखिम (मध्यवर्ती जोखिम) को दर्शाता है और इसमें भी 3+4 की तुलना में 4+3 अधिक आक्रामक होता है। यदि स्कोर 8 से 10 के बीच है तो यह अत्यधिक आक्रामक और तेजी से फैलने वाला कैंसर माना जाता है, जिसे उच्च ग्रेड कहते हैं। इन दोनों सूचकों के आधार पर प्रोस्टेट कैंसर को दो मुख्य श्रेणियों में बांटा जाता है। लोकलाइज्ड कैंसर और मेटास्टेटिक कैंसर।

 

  • लोकलाइज्ड प्रोस्टेट कैंसर: वह होता है जो पूरी तरह प्रोस्टेट ग्रंथि तक सीमित रहता है (टी 1 या टी 2)। ऐसे मामलों में उपचार की सफलता की संभावना अधिक होती है और मरीजों को सक्रिय निगरानी (सक्रिय निगरानी), शल्यचिकित्सा (सर्जरी) या विकिरण चिकित्सा (विकिरण चिकित्सा) जैसे विकल्प दिए जा सकते हैं।

 

  • मेटास्टेटिक प्रोस्टेट कैंसर: वह होता है जिसमें कैंसर प्रोस्टेट से बाहर निकलकर अन्य अंगों जैसे हड्डियों या लिम्फ नोड्स (टी3, टी4, एन1, एम1) तक पहुंच चुका होता है। ऐसे मामलों में इलाज अधिक जटिल होता है और इसका उद्देश्य रोग को नियंत्रित करना तथा रोगी के जीवन की गुणवत्ता को बनाए रखना होता है। इसके लिए हार्मोन थेरेपी, कीमोथेरेपी और अन्य उन्नत औषधीय विकल्पों का प्रयोग किया जाता है।

 


प्रोस्टेट कैंसर इलाज के विकल्प (Prostate cancer ke ilaaj in hindi)

प्रोस्टेट कैंसर के इलाज तीन बातों पर निर्भर करता है, पहला: कैंसर किस स्टेज में है, दूसरा: ग्लीसन स्कोर कितना है, तीसरा: रोगी की उम्र कितनी है।

 

अगर कैंसर धीमी गति से बढ़ने वाला हो तो सक्रिय निगरानी बेहतर विकल्प है। इसमें इलाज की निगरानी की जाती है। इसमें पीएसए परीक्षण, डिजिटल रेक्टल परीक्षण समय-समय पर बायोप्सी की जाती है। जिससे संभावित वृद्धि को समय रहते पहचाना जा सके। इसका लाभ यह है कि अनावश्यक इलाज से बचा जा सकता है। मगर कैंसर बढ़ जाए और समय पर पता न चले, तो स्थिति जटिल हो सकती है। इसलिए निगरानी अत्यंत आवश्यक है।

 

-जब कैंसर केवल प्रोस्टेट ग्रंथि तक सीमित हो और रोगी 75 वर्ष से अधिक हो तो वहां सर्जरी (रेडिकल प्रोस्टेटेक्टॉमी) विकल्प है। इस प्रक्रिया में प्रोस्टेट ग्रंथि को शरीर से हटाते है। यह सर्जरी दो प्रकार से की जा सकती है पारंपरिक ओपन सर्जरी के माध्यम। इसमें रक्तस्राव कम होता है और रोगी जल्द सही होता है। हालांकि सर्जरी के बाद इरेक्टाइल डिस्फंक्शन (erectile dysfunction) और पेशाब रोकने में परेशानी हो सकती है।

 

-प्रोस्टेट कैंसर के इलाज में रेडियोथेरेपी तब की जाती है जब कैंसर का जोखिम कम या मध्यम हो। इसमें दो प्रकार की तकनीकें शामिल हैं। जिनमें पहली बाह्य बीम विकिरण चिकित्सा में कैंसर ग्रस्त भाग पर बाहर से उच्च ऊर्जा किरणें डाली जाती हैं। दूसरी ब्रैकीथेरेपी में प्रोस्टेट ग्रंथि के भीतर छोटे रेडियोधर्मी बीज प्रत्यारोपित किए जाते हैं जो धीरे-धीरे विकिरण छोड़ते हैं। यह विधि प्रभावी है, लेकिन इसके दुष्प्रभावों में यूरिन मार्ग में जलन या मल त्याग में कठिनाई होती है।

 

-अगर कैंसर शरीर में अधिक फैल चुका हो तो हार्मोन थेरेपी एण्ड्रोजन डेप्रिवेशन थेरेपी (एडीटी) अपनाई जाती है। प्रोस्टेट कैंसर की कोशिका टेस्टोस्टेरोन नामक पुरुष हार्मोन पर निर्भर करती हैं। एडीटी से शरीर में टेस्टोस्टेरोन के स्तर को घटाया व रोका जाता है। हालांकि इस पद्धति के सामान्य दुष्प्रभावों में थकावट, यौन इच्छा में कमी और हड्डियों की कमजोरी शामिल हैं।

 

-कीमोथेरेपी में विशेष औषधियों का प्रयोग किया जाता है जो कैंसर कोशिकाओं को समाप्त करने का कार्य करती हैं। यह विधि विशेष रूप से मेटास्टेटिक या उन्नत अवस्था वाले कैंसर में प्रभावी होती है। हालांकि इसके दुष्प्रभावों में बाल झड़ना, अत्यधिक थकान का खतरा होता है।

 


जागरूकता और जीवनशैली की भूमिका

प्रोस्टेट कैंसर के इलाज के में जागरूकता और स्वस्थ जीवनशैली महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।


सही आहार:

  • संतुलित और एंटीऑक्सिडेंट युक्त आहार प्रोस्टेट कैंसर के जोखिम को कम करने में मददगार हो सकता है।


इन पदार्थों का सेवन करेंः

  • हरी सब्जी, टमाटर, गाजर, पत्तेदार साग

  • फल, खासकर अनार, अंगूर, बेरी

  • साबुत अनाज

  • मछली (ओमेगा-3 फैटी एसिड युक्त)

  • सोया, ग्रीन टी


इन चीजों से बचें:

  • रेड मीट और प्रोसेस्ड मीट

  • ज्यादा फैट, खासकर सैचुरेटेड फैट

  • अधिक डेयरी प्रोडक्ट्स

  • ज़्यादा मीठा और तले हुए खाद्य पदार्थ


शारीरिक सक्रियताः

  • सप्ताह में कम से कम 150 मिनट की मध्यम एक्सरसाइज़ (जैसे वॉक, साइकलिंकी, योग फायदेमंद है। 

  • व्यायाम से हार्मोनल संतुलन ठीक रहता है, शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और तनाव कम होता है। मोटापा कम होने से प्रोस्टेट कैंसर का रिस्क घटता है।

 


तनाव प्रबंधनः

  • मेडिटेशन, प्राणायाम, संगीत, परिवार के साथ समय बिताना या मनपसंद गतिविधि तनाव कम करने में मदद करती हैं। 

  • मानसिक स्वास्थ्य, कैंसर के इलाज की प्रक्रिया में भावनात्मक संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

 


नियमित स्वास्थ्य जांचः

  • 50 वर्ष के बाद (या अगर पारिवारिक इतिहास हो तो 45 वर्ष से ही) नियमित पीएसए टेस्ट और डीआरई रोग  कराना चाहिए। 

  • समय पर पहचान होने से इलाज जल्दी और सफलतापूर्वक हो सकता है।

 


प्रोस्टेट कैंसर होने पर कब डॉक्टर से मिलें? (Prostate cancer hone par kab doctor se milna chahiye in hindi)


प्रोस्टेट कैंसर पुरुषों में होने वाला एक सामान्य लेकिन गंभीर कैंसर है, जो प्रोस्टेट ग्रंथि (prostate gland) में होता है। प्रोस्टेट कैंसर अक्सर धीरे-धीरे बढ़ता है, लेकिन कुछ मामलों में यह आक्रामक भी हो सकता है। समय रहते नोएडा में अच्छा यूरोलॉजिस्ट से मिलना ज़रूरी है। इसका इलाज यूरोलॉजिस्ट करते हैं, वह यूरि-प्रणाली और पुरुष जननांगों के विशेषज्ञ होते हैं। ये प्रोस्टेट कैंसर की प्राथमिक जांच, बायोप्सी और सर्जरी करते हैं। यदि कैंसर सीमित है, तो यूरिलॉजिस्ट ही इलाज करते हैं।

 

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समय रहते हमे कॉल करें और आज ही जांच के लिए अपना रजिस्ट्रेशन करें।

 

 

निष्कर्ष (Conclusion)

प्रोस्टेट कैंसर एक गंभीर बीमारी है, लेकिन यह इलाज योग्य बीमारी है। अगर समय रहते जांच करवाई जाए, जैसे पीएसए टेस्ट और डीआरई, तो रोग की शुरुआती अवस्था में पहचान से इलाज अधिक सफल और कम जटिल होता है। इसलिए किसी भी संदेहजनक लक्षण को नज़रअंदाज न करें। बीच-बीच में यूरोलॉजिस्ट की सलाह लें और इलाज की सही दिशा में कदम बढ़ाएं। कैंसर होने पर परिवार का सहयोग और भावनात्मक साथ बेहद जरूरी होता है। लोगों को चाहिए कि डर और भ्रम की जगह जानकारी और जागरूकता को अपनाएं। नोएडा में इलाज की कीमत को लेकर भी लोग अक्सर भ्रमित रहते हैं, लेकिन सही जानकारी और विशेषज्ञ की सलाह से यह निर्णय लेना आसान हो सकता है।

 

 

पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर को लेकर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs about prostate cancer in men)


प्रश्न 1. क्या प्रोस्टेट कैंसर का इलाज संभव है?
उत्तर: अगर प्रोस्टेट कैंसर शुरुआती अवस्था में हो तो इलाज संभव है। सर्जरी, रेडियोथेरेपी, हार्मोन थेरेपी जैसे कई विकल्प उपलब्ध हैं।


प्रश्न 2. पीएसए टेस्ट क्या होता है और कब करवाना चाहिए?
उत्तर: पीएसए (प्रोस्टेट-विशिष्ट एंटीजन) एक ब्लड टेस्ट है जो प्रोस्टेट ग्रंथि से निकलने वाले प्रोटीन की मात्रा को मापता है।


प्रश्न 3. क्या प्रोस्टेट कैंसर केवल बुजुर्गों में होता है?
उत्तर: यह अधिकतर मामलों में 50 वर्ष के बाद होता है। लेकिन कुछ मामलों में 40 की उम्र के बाद भी इसके लक्षण देखे जाते हैं। 


प्रश्न 4. क्या प्रोस्टेट कैंसर का इलाज यौन जीवन को प्रभावित करता है?
उत्तर: कुछ इलाज जैसे सर्जरी या रेडियोथेरेपी के बाद इरेक्टाइल डिस्फंक्शन (erectile dysfunction) या सेक्स ड्राइव में कमी दिखती है।


प्रश्न 5. क्या प्रोस्टेट कैंसर से बचाव संभव है?
उत्तर: पूरी तरह नहीं, लेकिन जोखिम को कम किया जा सकता है। इसके लिए स्वस्थ आहार यानि कम फैट, ज्यादा सब्जी खाएं। नियमित व्यायाम करे। धूम्रपान से दूरी बनाए। समय-समय पर जांच कराए।


प्रश्न 6. प्रोस्टेट कैंसर और बीपीएच में क्या अंतर है?
उत्तर: बीपीएच (सौम्य प्रोस्टेटिक हाइपरप्लासिया) एक सामान्य वृद्धि है जो प्रोस्टेट ग्रंथि को बढ़ाती है लेकिन यह कैंसर नहीं है। जबकि प्रोस्टेट कैंसर में कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़ती हैं। अन्य अंगों में फैलती हैं।


प्रश्न 7. इलाज की अवधि कितनी होती है?
उत्तर: इलाज का समय कैंसर की स्टेज (stage of cancer) और चुने गए उपचार पर निर्भर करता है। कुछ मरीजों को केवल निगरानी में रखा जाता है। जबकि कुछ को कई महीनों तक सर्जरी, रेडियोथेरेपी या हार्मोन थेरेपी (Hormone Therapy) की जरूरत पड़ती है।


प्रश्न 8. इलाज के बाद क्या फॉलोअप जरूरी होता है?
उत्तर: इलाज के बाद नियमित पीएसए टेस्ट (PSA test) और यूरोलॉजिस्ट की फॉलोअप जांच बहुत जरूरी होती है। जिससे बीमारी की वापसी को समय रहते पकड़ा जा सके।

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