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डिमेंशिया व्यक्ति की स्मृति, सोचने-समझने की क्षमता, निर्णय लेने और व्यवहार पर गहरा असर डालता है। यह रोग धीरे-धीरे प्रगति करता है और समय के साथ व्यक्ति की दैनिक गतिविधियों को पूरी तरह से प्रभावित कर सकता है। डिमेंशिया (Dementia) को समय रहते समझना और इसके विभिन्न चरणों की पहचान करना इलाज और देखभाल की दृष्टि से अत्यंत आवश्यक है।
इस ब्लॉग में हम डिमेंशिया के कारण, प्रमुख लक्षण, और विभिन्न चरणों पर विस्तार से चर्चा करेंगे, ताकि आप या आपके किसी प्रियजन को शुरुआती संकेतों को पहचानने में मदद मिल सके।
अगर आप डिमेंशिया की जांच (Dementia testing), उपचार या देखभाल को लेकर किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना चाहते हैं, तो नोएडा में सर्वश्रेष्ठ हॉस्पिटल से संपर्क करें, जहां अनुभवी न्यूरोलॉजिस्ट (Neurologist) और आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं। अधिक जानकारी के लिए हमसे संपर्क करें — समय पर उठाया गया एक कदम, जीवन की दिशा बदल सकता है।
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डिमेंशिया में व्यक्ति की याददाश्त, सोचने-समझने की शक्ति, भाषा, निर्णय क्षमता और व्यवहार धीरे-धीरे क्षीण होती हैं। यह कोई एकल बीमारी नहीं है होती बल्कि लक्षणों का एक समूह है, जो मस्तिष्क की सामान्य कार्यप्रणाली में रुकावट उत्पन्न करता है। डिमेंशिया की सबसे सामान्य वजह अल्जाइमर रोग है। 65 वर्ष से अधिक आयु के लगभग 5-8% लोग किसी न किसी प्रकार के डिमेंशिया से प्रभावित होते हैं डिमेंशिया को एक प्रगतिशील न्यूरोडीजेनेरेटिव डिसऑर्डर (Neurodegenerative Disorders) के रूप में देखा जाता है। जिसमें समय के साथ मस्तिष्क कोशिकाएं नष्ट होती जाती हैं। समय रहते इसका निदान और देखभाल रोग की गति को धीमा कर सकती है। रोगी के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बना सकती है।
अल्जाइमर रोग (Alzheimer's disease) डिमेंशिया का सबसे सामान्य कारण है। इसमें मस्तिष्क में प्रोटीन जमा होने से कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। वेस्कुलर डिमेंशिया में मस्तिष्क में रक्त प्रवाह बाधित होने से होता है। इससे सोचने की क्षमता और ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत होती है। लूई बॉडी डिमेंशिया में मस्तिष्क की नसों में असामान्य प्रोटीन जमा होते हैं। इसमें भ्रम, नींद की दिक्कतें और संतुलन की समस्याएं होती हैं। फ्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया के कारण मस्तिष्क के सामने और किनारे के हिस्से में क्षति होती है। व्यक्ति के व्यवहार, भाषा और निर्णय लेने की क्षमता पर असर पड़ता है। लंबे समय तक पार्किंसन होने के बाद कई लोगों को डिमेंशिया हो सकता है। सिर की चोट, मस्तिष्क में संक्रमण, शराब या नशीले पदार्थों का लंबे समय तक सेवन, विटामिन बी 12 की कमी, थायरॉइड या लिवर से जुड़ी समस्याएं, डिप्रेशन भी इसके कारणों में शामिल हैं।
अल्जाइमर रोग (Alzheimer's disease):
इसमें मस्तिष्क में एमायलॉइड प्लाक्स और टॉ प्रोटीन का असामान्य जमाव होता है। जिससे स्मृति, भाषा और सोचने की क्षमता प्रभावित होती है। धीरे-धीरे बढ़ने वाला यह रोग प्रारंभ में व्यक्ति को हाल की बातें याद रखने में भूलाता है।
वैस्कुलर डिमेंशिया (Vascular Dementia)
यह तब होता है जब मस्तिष्क में रक्त प्रवाह बाधित होता है। इसमें निर्णय लेने की क्षमता, एकाग्रता और योजना बनाने में कठिनाई होती है, लक्षण अचानक भी उभरते हैं, हर स्ट्रोक के बाद स्थिति और बिगड़ सकती है।
लुई बॉडी डिमेंशिया (Lewy Body Dementia)
इसमें मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाओं में लुई बॉडी नामक असामान्य प्रोटीन जमा होते हैं। इसके लक्षण अल्जाइमर और पार्किंसन (Parkinson's) दोनों से मिलते-जुलते हैं, इसमें भ्रम की स्थिति, नींद से संबंधित विकार, चलने में कठिनाई और दृष्टि से जुड़ा भ्रम होता है।
फ्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया (Frontotemporal dementia)
यह डिमेंशिया मस्तिष्क के फ्रंटल और टेम्पोरल लोब्स को प्रभावित करता है। जो व्यक्ति के व्यवहार, निर्णय क्षमता और भाषा को नियंत्रित करते हैं। यह 40–65 वर्ष की आयु के बीच शुरू होता है। इसमें रोगी में व्यवहार में बदलाव, सामाजिक अनुशासन की कमी और बोलने में समस्या होती है।
चरण 1 – सामान्य कार्यशीलताः
कोई भी स्मृति हानि या मानसिक समस्या नहीं होती है। इसमें मस्तिष्क सामान्य रूप से काम करता है, व्यवहार और संज्ञानात्मक क्षमता सामान्य होती है।
चरण 2 – बहुत हल्की हानिः
कभी-कभी सामान्य भूलने की घटनाएं होती है जैसे चाबी या चश्मा रखकर भूल जाना। उम्र से जुड़ी सामान्य बातें यानी कोई स्पष्ट रोग संकेत नहीं होता है।
चरण 3 – हल्का संज्ञानात्मक अवक्रमणः
ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई होती है, निर्णय लेने में संकोच होता है, सामाजिक कार्यों में परेशानी महसूस होती है, इस चरण में परिवार वालों को फर्क महसूस होता है
चरण 4 – मध्यम संज्ञानात्मक हानिः
स्पष्ट लक्षण सामने आते हैं जैसे तिथि, स्थान, पैसे का हिसाब याद न रखना। जटिल कार्यों यानी बिल भरना, बैंकिंग में असमर्थता होती है।
चरण 5 – मध्यम गंभीर हानिः
दैनिक जीवन की गतिविधियों में मदद की जरूरत पड़ती है जैसे कपड़े पहनना, खाना बनाना, नहाना आदि। अपने घर का पता या परिवार के सदस्यों के नाम भूलना।
चरण 6 – गंभीर संज्ञानात्मक गिरावटः
व्यक्ति को अपने परिजनों के नाम याद नहीं रहते हैं। व्यवहार में बदलाव, भ्रम, रोना या गुस्सा आना, रात में बेचैनी, नींद में गड़बड़ी, टॉयलेट जैसी गतिविधियों में भी सहारे की आवश्यकता होती है।
चरण 7 – बहुत गंभीर स्थितिः
बोलने में कठिनाई, शब्दों की कमी होती है, चलने-फिरने में असमर्थता होती है, निगलने में दिक्कत, पूर्ण देखभाल की आवश्यकता होती है। यह चरण पूर्ण शारीरिक और मानसिक निर्भरता का होता है
डिमेंशिया का इलाज तभी प्रभावी हो सकता है जब उसका समय पर निदान हो। इसके लिए न्यूरोलॉजिस्ट कई स्तरों पर जांच करते हैं:
डिमेंशिया या अन्य न्यूरोलॉजिकल समस्याओं की पहचान के लिए रोगी की संज्ञानात्मक क्षमता, स्मृति, संतुलन, बोलने, और सोचने की क्षमता की विस्तृत जांच की जाती है। इस प्रक्रिया में डॉक्टर यह तय करते हैं कि मस्तिष्क के कौन-से न्यूरोलॉजिकल फंक्शन प्रभावित हो रहे हैं और उनकी गंभीरता क्या है।
इस तरह की गहन जांच और सही निदान के लिए आपको अनुभवी विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है। यदि आप किसी भरोसेमंद विशेषज्ञ की तलाश में हैं, तो नोएडा में अच्छे न्यूरोलॉजिस्ट से संपर्क करना एक सही कदम हो सकता है। यहां कई reputed हॉस्पिटल्स में अनुभवी न्यूरोलॉजिस्ट उपलब्ध हैं, जो आधुनिक तकनीकों और जांच विधियों की मदद से सटीक इलाज सुनिश्चित करते हैं।
मस्तिष्क की संरचना में बदलाव जैसे मस्तिष्क संकोचन, स्ट्रोक या ट्यूमर का पता लगाते हैं। यह डिमेंशिया के अन्य संभावित कारणों को बाहर करने में मदद करता है।
इसमें स्मृति, ध्यान, गणना, भाषा और कॉन्शसनेस की जांच की जाती है। स्कोर के आधार पर डिमेंशिया की गंभीरता का निर्धारण करते हैं।
थायरॉइड, विटामिन बी 12 की कमी आदि ब्लड जांच यह सुनिश्चित करती है कि संज्ञानात्मक गिरावट किसी अन्य इलाज योग्य समस्या के कारण तो नहीं हो रही है।
डिमेंशिया से पूरी तरह बचाव की कोई गारंटी नहीं है, लेकिन जीवनशैली में बदलाव और कुछ सावधानियों से इसके जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
रोजाना कम से कम 30 मिनट पैदल चलें, योग या हल्का व्यायाम करें। व्यायाम मस्तिष्क में रक्त संचार को बेहतर बनाता है।
माइंड डाइट और मेडिटेरेनियन डाइट अपनाएं। हरी सब्जियां, फल, नट्स, मछली, जैतून का तेल, साबुत अनाज का सेवन करें, तले-भुने, प्रोसेस्ड फूड और ज्यादा नमक-शक्कर से परहेज करें।
दिमागी खेल खेलें यानी सुडोकू, पहेली, ताश, शतरंज, नई चीजें सीखें यानी नई भाषा, संगीत वाद्य, लेखन या पेंटिंग करें।
रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल और डायबिटीज को नियंत्रण में रखें क्योंकि जो दिल के लिए अच्छा है, वही दिमाग के लिए भी अच्छा है।
धूम्रपान और शराब से दूरी बनाएं ये मस्तिष्क कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं और डिमेंशिया का खतरा बढ़ाते हैं।
नींद पूरी और अच्छी लें, हर रात 7–8 घंटे की गहरी नींद लें, नींद में रुकावट या स्लीप एप्निया जैसी समस्याओं का इलाज करवाएं।
तनाव को नियंत्रित करें योग, ध्यान, प्राणायाम और सामाजिक मेलजोल तनाव कम करने में सहायक हैं।
सुनने की क्षमता का ध्यान रखें, सुनाई न देना डिमेंशिया के खतरे को बढ़ाता है जरूरत हो तो हियरिंग एड का इस्तेमाल करें।
सामाजिक रूप से जुड़े रहें अकेलेपन से मानसिक रोगों का खतरा बढ़ता है। परिवार, दोस्तों के साथ समय बिताएं।
नियमित जांच कराएं विशेषकर यदि पारिवारिक इतिहास हो तो साल में एक बार न्यूरोलॉजिस्ट से परामर्श लें (Consult a neurologist)।
डिमेंशिया का उपचार केवल दवाओं तक सीमित नहीं होता। इसका व्यापक प्रबंधन परिवार, देखभाल, वातावरण और जीवनशैली पर भी निर्भर करता है।
औषधीय प्रबंधनः
डोनेपेजिल (अल्जाइमर रोग के शुरुआती से मध्यम चरणों में प्रयोग में लाई जाती है। मेमंटीन मध्यम से गंभीर डिमेंशिया में सहायक होती है, रिवास्टिगमाइन मस्तिष्क में रसायन संतुलन बनाए रखने में मदद करती है, गैलेंटामाइन और अन्य अल्जाइमर-स्पेसिफिक दवाएं इलाज में सहायक होती है। यह दवाएं लक्षणों में सुधार ला सकती हैं, लेकिन रोग को पूरी तरह से रोक नहीं सकतीं।
थैरेपी आधारित हस्तक्षेपः
संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (CBT) भ्रम, चिंता और अवसाद जैसे मानसिक लक्षणों को संभालने में काफी सहायक होती है। यह थेरेपी मरीज को नकारात्मक सोच को समझने और सकारात्मक सोच विकसित करने में मदद करती है।
मेमोरी ट्रेनिंग में स्मृति को बेहतर करने के लिए विशेष गतिविधियां और अभ्यास कराए जाते हैं, जो डिमेंशिया या अल्जाइमर से जूझ रहे मरीजों के लिए लाभदायक होते हैं।
वहीं, म्यूजिक और आर्ट थेरेपी रचनात्मक अभिव्यक्ति के माध्यम से मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद करती है। यह थेरेपी न केवल तनाव को कम करती है, बल्कि रोगी को भावनात्मक रूप से जोड़े रखने और सामाजिक रूप से सक्रिय बनाने में भी उपयोगी होती है।
जहां तक बात है नोएडा में इलाज की कीमत की, तो यह विभिन्न थेरेपी सेशन्स की संख्या, हॉस्पिटल या क्लिनिक की सुविधा, और विशेषज्ञ की फीस पर निर्भर करती है। आम तौर पर CBT और मेमोरी ट्रेनिंग की प्रति सेशन कीमत ₹1,000 से ₹3,000 तक हो सकती है, जबकि आर्ट और म्यूजिक थेरेपी के पैकेज अलग-अलग हो सकते हैं। सटीक जानकारी के लिए किसी विश्वसनीय क्लिनिक या अस्पताल से संपर्क करना उचित होगा।
परिवार और देखभाल प्रबंधनः
डिमेंशिया रोगी के लिए दवाओं की समय पर निगरानी, पोषण, मानसिक सहयोग और दैनिक जरूरतों की पूर्ति में सक्रिय भागीदारी जरूरी होती है। घर का माहौल सुरक्षित और सरल बनाना भी जरूरी होती है। इससे स्पष्ट संकेतक, पर्याप्त रोशनी और न्यूनतम विघटन यानी रूटीन बनाना रोगी को मानसिक रूप से स्थिर बनाता है। रोगी को अपनापन, धैर्य और सम्मान देना बेहद जरूरी है। उनकी बातों को महत्व देना, उन्हें निर्णय में शामिल करना आत्मविश्वास बढ़ाता है।
रोग की प्रगति और जीवनशैलीः
हल्का व्यायाम जैसे टहलना, योग मानसिक स्थिति में सुधार लाता है। संतुलित आहार विशेषकर मेडिटेरेनियन डाइट यानी फल, सब्जी, फाइबर, ओमेगा-3 मस्तिष्क को पोषण देता है। बोर्ड गेम्स, पहेली, ड्राइंग, किताबें पढ़ना मस्तिष्क को सक्रिय रखते हैं। संगीत सुनना और पुराने फोटो देखना सकारात्मक स्मृतियों को सक्रिय करता है। पूरा आराम और अच्छी नींद संज्ञानात्मक स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। रिश्तेदारों, दोस्तों या ग्रुप गतिविधियों से जुड़े रहना मानसिक गिरावट को कम करता है।
डिमेंशिया में व्यक्ति की याददाश्त, सोचने की क्षमता, निर्णय लेने की क्षमता और दैनिक कार्यों को करने की क्षमता प्रभावित होती है। लक्षण नजर आने पर जल्द से जल्द डॉक्टर से मिलना जरूरी होता है। न्यूरोलॉजिस्ट (Neurologist) डॉक्टर मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के रोगों के विशेषज्ञ होते हैं। वह डिमेंशिया की सटीक जांच, ब्रेन स्कैन, न्यूरोलॉजिकल परीक्षण और दवा प्रबंधन में सबसे अहम भूमिका निभाते हैं।
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डिमेंशिया एक जटिल लेकिन पहचाने जाने वाला न्यूरोलॉजिकल विकार है। जिसे समय रहते पहचानना और देखभाल देना बेहद जरूरी है। यह केवल स्मृति की समस्या नहीं, बल्कि जीवन की गुणवत्ता को गहराई से प्रभावित करने वाला रोग है। अगर न्यूरोलॉजी गाइडलाइन के अनुसार समय पर निदान और उपचार शुरू किया जाए, तो इसकी प्रगति को धीमा किया जा सकता है। चुनौती से निपटने के लिए परिवार, समाज और चिकित्सा प्रणाली तीनों की मिलीजुली भागीदारी जरूरी है। समझ, सहानुभूति और वैज्ञानिक उपायों से हम डिमेंशिया से प्रभावित लोगों को सक्रिय जीवन जीने में सहायता कर सकते हैं।
प्रश्न 1. डिमेंशिया के कितने चरण होते है ?
जवाब: डिमेंशिया को सात चरणों में बांटा गया है। जिन्हें वैश्विक गिरावट पैमाना (जीडीएस) के अनुसार वर्गीकृत करते हैं। यह चरण हल्की भूलचूक से लेकर गंभीर मानसिक और शारीरिक निर्भरता तक बढ़ते हैं।
प्रश्न 2. क्या डिमेंशिया का इलाज संभव है ?
जवाब: डिमेंशिया का पूर्ण इलाज संभव नहीं है। मगर दवाओं, थैरेपी और जीवनशैली प्रबंधन से इसके लक्षणों को नियंत्रित कर सकते हैं। रोग की गति को धीमा कर सकते हैं।
प्रश्न 3. डिमेंशिया का पता कैसे चलता है ?
जवाब: डिमेंशिया का निदान न्यूरोलॉजिस्ट संज्ञानात्मक परीक्षण, न्यूरोलॉजिकल एग्जामिनेशन, एमआरआई/सीटी स्कैन और ब्लड टेस्ट शामिल होते हैं।
प्रश्न 4. डिमेंशिया किन लोगों को अधिक होता है ?
जवाब: यह रोग सामान्यत 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में पाया जाता है। कुछ मामलों में यह 40-60 की उम्र में भी शुरू होता है।
प्रश्न 5. डिमेंशिया और भूलने की बीमारी में क्या अंतर है ?
जवाब: सामान्य भूलने की आदतें उम्र का हिस्सा हो सकती हैं, लेकिन डिमेंशिया में यह भूलने की प्रवृत्ति रोजमर्रा के जीवन को बाधित करती है। इसमें लोगों को पहचानना, रास्ता भूल जाना या बातों को बार-बार दोहराना शामिल होता।
प्रश्न 6. क्या डिमेंशिया के रोगी ठीक हो सकते हैं ?
जवाब: समय पर निदान हो और समुचित देखभाल मिले तो रोगी कई वर्षों तक संतुलित और सम्मानजनक जीवन जी सकता है।
प्रश्न 7. क्या डिमेंशिया के रोगियों को अकेला छोड़ना ठीक है ?
जवाब: डिमेंशिया के रोगी को हमेशा देखरेख की जरूरत होती है। अकेलेपन से उनकी स्थिति और बिगड़ती है। इसलिए परिवार या देखभालकर्ता की भूमिका अहम होती है।
प्रश्न 8. क्या डिमेंशिया में भ्रम और गुस्सा सामान्य हैं ?
जवाब: जैसे-जैसे रोग बढ़ता है। मरीजों में भ्रम, चिड़चिड़ापन, व्यवहार परिवर्तन और रात में बेचैनी होती हैं। इन्हें थैरेपी, वातावरण और संयम से नियंत्रित कर सकते हैं।