घुटने के दर्द से छुटकारा: सर्जरी से पहले और बाद में क्या जानना जरूरी है?

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घुटने का दर्द भागदौड़ भरी जिंदगी में आम है। उम्र बढ़ने, मोटापा, आर्थराइटिस या चोट जैसी स्थितियों के कारण यह दर्द कई बार इतना बढ़ता है कि चलना-फिरना, सीढ़ियां चढ़ना मुश्किल होता हैं। इस कारण घुटने की सर्जरी एक व्यावहारिक और राहत देने वाला विकल्प है। इस ब्लॉग में घुटने के दर्द के कारण, लक्षण और उपलब्ध इलाज के विकल्पों के बारे में विस्तार से जानकारी साझा करेंगे।

 

अगर आप इस बीमारी की जांच या इलाज के लिए भरोसेमंद चिकित्सा सुविधा की तलाश कर रहे हैं, तो नोएडा में सर्वश्रेष्ठ आर्थोपेडिक हॉस्पिटल का चयन करना बेहद जरूरी है, जहां अनुभवी ऑर्थोपेडिक्स और अत्याधुनिक तकनीक के माध्यम से मरीज को बेहतर देखभाल मिल सके।

 

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TABLE OF CONTENTS-

 

 

घुटने के दर्द के आम कारण (Common causes of Knee Pain)

घुटने सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाला जोड़ होते हैं। इसके खराब होने से चलना-फिरना, बैठना और दैनिक क्रिया प्रभावित होती हैं। नीचे घुटने में दर्द के पांच आम कारण हैं:


ऑस्टियोआर्थराइटिसः
यह एक डीजनरेटिव जॉइंट रोग है, जिसमें घुटने के जोड़ की कार्टिलेज धीरे-धीरे घिसती है। उम्र के साथ यह समस्या होती जाती है। दर्द, सूजन और अकड़न इसके प्रमुख लक्षण हैं। सीढ़ियां चढ़ने-उतरने और सुबह उठते समय दर्द बढ़ता है


लिगामेंट इंजरी:
लिगामेंट्स (Ligament) जोड़ को स्थिर बनाए रखते हैं एसीएल (पूर्वकाल क्रूसिएट लिगामेंट) की चोट अचानक मोड़ने या झटके से होती है। यह युवाओं और खिलाड़ियों में ज्यादा होती है। चोट लगने के साथ पॉप जैसी आवाज, सूजन और चलने में परेशानी होती है


मिनिस्कस टियरः
मिनिस्कस घुटने के बीच स्थित रबड़ जैसी कुशनिंग संरचना होती है। अचानक मुड़ने, उठने या भारी वजन उठाने से कई बार यह फट जाती है। यह दर्द धीरे-धीरे बढ़ता है। इससे जोड़ में लॉकिंग की समस्या महसूस होती है।


रूमेटॉइड आर्थराइटिसः
यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है। इसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली जोड़ों पर हमला करती है। दोनों घुटनों में एक साथ सूजन के सात दर्द होता है। सुबह के समय दर्द ज्यादा होती है। इसके अलावा जोड़ों में लालिमा भी होती है।


मोटापा और उम्र से जुड़ी क्षतिः
अत्यधिक वजन घुटनों पर दबाव डालता है,जिससे कार्टिलेज तेजी से घिसता है। बढ़ती उम्र के साथ जोड़ के घिसने की प्रक्रिया तेज होती है। यह ऑस्टियोआर्थराइटिस (osteoarthritis) को भी बढ़ावा देता हैं।

 


कब करें सर्जरी पर विचार ? (When to consider Surgery)

हर घुटने के दर्द के कारण सर्जरी नहीं करनी पड़ती है, जब कष्ट बढ़ने लगे और जीवन की गुणवत्ता पर असर पड़े तब सर्जरी की जरूरत होती है। 


दवाओं और फिजियोथेरेपी से राहत नहीं मिलने परः
जब लंबे समय तक पेनकिलर, स्टेरॉयड इंजेक्शन या फिजियोथेरेपी के बाद भी आराम न मिले। दर्द में कोई स्थायी सुधार न होने पर व लक्षण लगातार बिगड़ने पर सर्जरी की जाती है।


चलने-फिरने में असहनीय दर्दः
घुटने में ऐसा तेज दर्द जो चलने, खड़े होने या सोते समय भी बना रहे। उठने-बैठने, सीढ़ियां चढ़ने या जमीन पर बैठने पर परेशानी होने पर सर्जरी की जाती है।


एक्स-रे या एमआरआई में घुटने की गंभीर क्षति दिखेः
जब एक्सरे और एमआरआई जांच में कार्टिलेज पूरी तरह घिस चुकी हो। जोड़ में बदलाव, हड्डियों की आपसी रगड़ दिख रही हो तो सर्जरी की जाती है।


दैनिक क्रियाओं में बाधा आने लगेः
घर के काम, दफ्तर जाना, घूमना-फिरना बाधित हो जाए। व्यक्ति दूसरों पर निर्भर होने लगे,  मानसिक तनाव या नींद की कमी होने पर सर्जरी की जाती है।


डॉक्टर द्वारा सुझाई गई सर्जरीः
जब घुटने की समस्या गंभीर हो जाए और दवाओं या फिजियोथेरेपी से आराम न मिले, तो डॉक्टर सर्जरी करते हैं। इसके लिए डॉक्टर मरीज की उम्र, जीवनशैली और जोड़ में हुई क्षति को देखते हैं।

 

  • अगर पूरा घुटना घिस चुका हो और जोड़ में व्यापक नुकसान हो तो टीकेए (टोटल नी आर्थ्रोप्लास्टी) रिप्लेसमेंट की सलाह दी जाती है। जिसमें घुटने के दोनों सिरों को कृत्रिम इम्प्लांट से बदला जाता है। 

  • अगर क्षति केवल घुटने के एक हिस्से अंदरूनी या बाहरी भाग तक सीमित है तो यूकेए (यूनिकॉम्पार्टमेंटल घुटना आर्थ्रोप्लास्टी) यानी आधे घुटने की सर्जरी की जातीहै। 

  • अगर घुटने में मिनिस्कस टियर, लिगामेंट इंजरी या हल्की कार्टिलेज क्षति हो तो डॉक्टर आर्थ्रोस्कोपी की सलाह देते हैं। इसमे मिनिमली इनवेसिव प्रोसीजर में छोटे चीरे से कैमरा और उपकरण डालकर घुटने के अंदरूनी हिस्से की जांच और उपचार किया जाता है।

 

सर्जरी से पहले की तैयारी (Preparation before Surgery)

घुटने की सर्जरी केवल मेडिकल प्रोसीजर नहीं बल्कि इसकी सफलता इस बात पर भी निर्भर करती है कि आप इसके लिए कितना तैयार हैं।
 

ब्लड टेस्ट, ईसीजी, एक्स-रे जैसी जांचेंः
सर्जरी से पहले शरीर की स्थिति जानने के लिए कई मेडिकल जांच होती हैं। इसमें ब्लड शुगर, सीबीसी, ब्लड ग्रुप, कोगुलेशन प्रोफाइल ईसीजी और छाती का एक्स-रे किया जाता है। हृदय व फेफड़ों की जांच के अलावा घुटने का एक्सरे या एमआरआई जांच होती है। इससे पता करते हैं कि शरीर सर्जरी और एनेस्थीसिया के लिए तैयार है या नहीं।


वजन प्रबंधन और ब्लड शुगर कंट्रोलः
अधिक वजन से घुटने पर दबाव बढ़ता है। रिकवरी धीमी होती है। इसलिए  डायबिटीज (Diabetes) है, तो ब्लड शुगर को नियंत्रित करना अत्यंत आवश्यक है। इससे संक्रमण का खतरा घटता है और घाव जल्दी भरते हैं।


फिजियोथेरेपिस्ट से सर्जरी पूर्व व्यायामः
सर्जरी से पहले घुटने और आसपास की मांसपेशियों को मजबूत करना जरूरी होता है। इससे सर्जरी के बाद उठने, चलने और रिकवरी में सहायता मिलती है। फेफड़ों और रक्त संचार को बेहतर बनाने के लिए व्यायाम जरूरी हैं।


मानसिक रूप से तैयार रहनाः
सर्जरी से पहले डर या भ्रम को दूर करने के लिए डॉक्टर से खुलकर सवाल पूछें। सकारात्मक सोच और मानसिक तैयारी सर्जरी के बाद के अनुभव को बेहतर बनाने में मदद करती है।


अस्पताल और सर्जन का चयन सोच-समझकर करेंः
सर्जरी के लिए अनुभवी ऑर्थोपेडिक सर्जन और मल्टी-स्पेशियलिटी हॉस्पिटल का चयन सोच समझकर करें। जहां आईसीयू, फिजियोथेरेपी यूनिट, इमरजेंसी सपोर्ट आदि सुविधाएं हों। मरीज की मेडिकल हिस्ट्री के अनुसार उपयुक्त सेंटर का चयन होना चाहिए। जिससे आपातकालीन स्थित में हर प्रकार की गंभीर समस्या से निपटा जा सके।

 


घुटने की सर्जरी के प्रकार (Types of knee Surgery)

घुटने की सर्जरी मरीज की अवस्था, उम्र, नुकसान की गंभीरता और सक्रियता के स्तर पर निर्भर करती हैं।

 

  • टोटल नी रिप्लेसमेंट में घुटने के दोनों सिरों फीमर और टिबिया की सतह को कृत्रिम धातु या प्लास्टिक की मदद से बदल जाता है। यह सर्जरी तब की जाती है जब घुटने का अंदरूनी हिस्सा पूरी तरह घिस चुका हो।

  • अगर घुटने का सिर्फ एक हिस्सा अंदरूनी या बाहरी  खराब हुआ हो तो यूनिकॉम्पार्टमेंटल नी रिप्लेसमेंट अधिक उपयुक्त होता है। इस सर्जरी में केवल प्रभावित भाग को ही बदला जाता है। यह प्रक्रिया कम चीरे, कम रक्तस्राव और तेज रिकवरी के लिए जानी जाती है।

  • जब घुटने की पूरी सतह को बदलना जरूरी न हो, बल्कि किसी आंतरिक चोट, मिनिस्कस टियर या लिगामेंट रिपेयर की आवश्यकता हो तब घुटने की आर्थ्रोस्कोपी की जाती है। यह इस मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया में छोटे छेदों से कैमरा और उपकरण डालकर घुटने के अंदर की जांच और उपचार किया जाता है।

  • अगर कार्टिलेज घिस चुकी हो लेकिन हड्डियों को पूरी तरह बदलने की जरूरत न हो तो कार्टिलेज पुनर्जनन तकनीकों का सहारा लिया जाता है। इनमें कई आधुनिक विधियां शामिल हैं जैसे माइक्रोफ्रैक्चर सर्जरी, जिसमें हड्डी में सूक्ष्म छिद्र कर कार्टिलेज के पुनर्जनन को बढ़ावा दिया जाता है।

  • ऑटोलॉगस चोंड्रोसाइट इम्प्लांटेशन (एसीआई) में मरीज की कार्टिलेज कोशिकाएं प्रयोग कर नई कार्टिलेज तैयार की जाती है।

  • ओएटीएस (ओस्टियोकॉन्ड्रल ऑटोग्राफ़्ट ट्रांसफर सिस्टम) में शरीर के किसी अन्य हिस्से से हड्डी और कार्टिलेज निकालकर प्रभावित क्षेत्र में ट्रांसप्लांट किया जाता है।

 

 

सर्जरी के बाद की देखभाल (Post-surgery Care)

घुटने की सर्जरी के बाद देखभाल न सिर्फ रिकवरी को तेज करती है बल्कि संभावित जटिलताओं से भी बचाती है। 


हॉस्पिटल में रुकने की अवधिः
संपूर्ण घुटना प्रतिस्थापन के बाद मरीज को तीन से पांच दिन तक अस्पताल में रखा जाता है। इस दौरान संक्रमण पर नजर, वॉउंड ड्रेसिंग, दर्द प्रबंधन और चलने की प्रारंभिक ट्रेनिंग दी जाती है। आर्थ्रोस्कोपी जैसी मामूली प्रक्रिया के बाद मरीज उसी दिन या एक दिन बाद डिस्चार्ज हो सकता है।


दवाएं, दर्द प्रबंधन और सूजन नियंत्रित करनाः
डॉक्टर द्वारा दी गई पेनकिलर, एंटीबायोटिक और एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएं समय पर लें। बर्फ की सिकाई से सूजन में आराम मिलता है। अगर ब्लड क्लॉटिंग का रिस्क हो तो ब्लड थिनर दवा भी दी जाती है


संक्रमण से बचाव के उपाय
ऑपरेशन वाले स्थान को साफ-सुथरा और सूखा रखें। पट्टी समय पर बदलवाएं और किसी भी लालिमा, पस या पर डॉक्टर को दिखाएं। सर्जरी के बाद कुछ हफ्तों तक भीड़-भाड़ और धूल वाले स्थानों से बचें। डायबिटिक मरीजों के लिए ब्लड शुगर नियंत्रित रखना बहुत जरूरी है।

 


वॉकर या स्टिक का सहारा कब तक?

पहले 1–2 हफ्तों तक वॉकर का उपयोग आवश्यक होता है। धीरे-धीरे मांसपेशियों के मजबूत होने के साथ मरीज स्टिक पर शिफ्ट कर सकता है। 4 से 6 हफ्ते में अधिकतर मरीज बिना सहारे चलने लगते हैं इसके लिए फिजियोथेरेपिस्ट की सलाह जरूरी है।


घर में सुरक्षा उपाय: 
बैठने के लिए मजबूत और ऊंची कुर्सी का इस्तेमाल कर चाहिए। वॉशरूम में कमोड राइजर, ग्रैब बार्स और नॉन-स्लिप मैट्स लगवाना चाहिए। सीढ़ियों से जितना हो सके बचें जरूरी हो तो सहारे से और धीरे-धीरे बढ़ना चाहिए। फर्श पर बिछी ढीली चादरें, फिसलन वाले कारपेट और बिजली के तार हटा दें। इससे गिरने व करंट लगने का खतरा होता है।  घर में रात में चलने के लिए पर्याप्त लाइटिंग का इंतजाम रखें।

 


फिजियोथेरेपी और रिकवरी (Physiotherapy and Recovery)

नियमित फिजियोथेरेपी न केवल दर्द को कम करती है, बल्कि मांसपेशियों को मजबूत बनाकर घुटने को फिर से चलने लायक बनाती है।

 

पहले सप्ताह मेंः
पहले दिन से ही पैरों की हल्की हरकत शुरू होती है। जिससे ब्लड सर्कुलेशन बना रहे। फिजियोथेरेपिस्ट की देखरेख में मरीज को बिस्तर से उठाया जाता है। कुछ मरीजों को वॉकर या सपोर्ट फ्रेम के सहारे खड़ा किया जाता है। अभ्यास में पैर सीधा करके उठाना, पंजों को आगे-पीछे हिलाना, घुटने को धीरे-धीरे मोड़ने की कोशिश करनी चाहिए।

 

2 से 6 हफ्तेः
इस चरण में धीरे-धीरे घुटने पर वजन डालना शुरू होता है। चलना सीखने की ट्रेनिंग दी जाती है। शुरू में वॉकर के साथ और फिर स्टिक के सहारे प्रयास कर सकते हैं। फिजियोथेरेपिस्ट बैलेंस सुधारने और मांसपेशियों को सशक्त बनाने के अभ्यास करवाते हैं।

 

6 से 8 हफ्तों हफ्ते बादः
अधिकांश मरीज 6 से 8 हफ्तों में बिना सहारे चलने लगते हैं। इस चरण में घुटने की फ्लेक्सिबिलिटी का फोकस होता है  । लेकिन लंबी दूरी चलने के लिए सामान्य दिनचर्या जैसे ऑफिस, मार्केट जाने से पहले डॉक्टर और फिजियोथेरेपिस्ट के मार्गदर्शन में गतिविधियों को बढ़ाना जरूरी होता है।


नियमित व्यायाम और मांसपेशियों को मजबूत बनानाः
रिकवरी के बाद भी कई महीनों तक हल्के व्यायाम आवश्यक होते हैं। जैसे साइकिल चलाना, तैराकी, योग व स्ट्रेचिंग जांघों, पिंडलियों और हिप्स की मांसपेशियों को मजबूत बनाए रखने के लिए घुटने की सुरक्षा जरूरी है।


डॉक्टर की निगरानी में रिकवरी ट्रैकिंगः
नियमित फॉलोअप से यह सुनिश्चित किया जाता है कि घुटना सही है या नहीं। अगर कोई असामान्य लक्षण जैसे सूजन, बुखार, तेज दर्द हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। फॉलोअप में एक्स-रे या अन्य जांचों के जरिए आंतरिक स्थिति पर नजर रखी जाती है।

 


जीवनशैली में बदलावः

सर्जरी इस बार पर निर्भर करती है कि आप जीवनशैली में क्या-क्या बदलाव करते हैं। अच्छी आदतें घुटने की उम्र बढ़ाती हैं और दोबारा सर्जरी की जरूरत को कम करती हैं।


संतुलित आहारः
हड्डियों की मजबूती के लिए कैल्शियम और विटामिन डी (vitamin D) बेहद जरूरी हैं। दूध, दही, पनीर, हरी पत्तेदार सब्जियां, तिल और सोया फायदेमंद हैं। विटामिन डी के लिए सुबह की धूप लेनी चाहिए। डॉक्टर की सलाह पर सप्लिमेंट लेना चाहिए। प्रोटीन युक्त आहार मांसपेशियों की रिकवरी में मदद करता है।


वजन नियंत्रित रखनाः
अधिक वजन घुटने पर दबाव डालता है। वजन घटाने से दर्द और सूजन दोनों में राहत मिलती है। इसलिए रोजाना 20–30 मिनट की हल्की-फुल्की गतिविधि और संतुलित डाइट से वजन पर नियंत्रण रखना चाहिए। 5 किलो वजन कम करने से घुटने पर 20 किलो भार कम होता है।


नियमित योग, तैराकी या साइकलिंगः
नियमित योग, तैराकी या साइकलिंग से लचीलापन बढ़ता है। मानसिक तनाव भी कम होता है। तैराकी घुटनों को बिना झटके के मुवमेंट देती है। स्टैटिक साइकलिंग से जांघों और पिंडलियों की मांसपेशियां मजबूत होती हैं।


बार-बार झुकने और सीढ़ी चढ़ने से परहेजः
जमीन पर बैठना, पालथी मारना, बार-बार झुककर कुछ उठाना टालना चाहिए। बहुत अधिक सीढ़ियां चढ़ना-उतरना घुटने पर असर डालता है। जहां तक हो सके लिफ्ट या रैम्प का इस्तेमाल करना चाहिए। घर में ऐसे कामों की व्यवस्था करें। जिससे बार-बार झुकना न पड़े।

 

नोएडा में अच्छा आर्थोपेडिक्स चुनना इस प्रक्रिया का पहला और सबसे जरूरी कदम है, ताकि सही समय पर इलाज शुरू किया जा सके और रोग की प्रगति को नियंत्रित किया जा सके।


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निष्कर्ष (Conclusion)

घुटने का दर्द सिर्फ एक शारीरिक समस्या नहीं है। यह जीवन की गति, आत्मनिर्भरता और मानसिक संतुलन को प्रभावित करता है। ऐसे में सही समय पर लिया गया सर्जरी का निर्णय और सही देखभाल जरूरी है। कोई भी व्यक्ति सर्जरी के बाद न केवल चल फिर सकता है, बल्कि सामान्य, सक्रिय और खुशहाल जीवन जी सकता है। लेकिन इलाज तभी सफल होता है। जब मरीज डॉक्टर का कहां सही तरीके से मानें।


नोएडा में घुटने के रोग के इलाज की कीमत मरीज की स्थिति, दर्द के कारण जैसे ऑस्टियोआर्थराइटिस, लिगामेंट इंजरी या मिनिस्कस टियर, आवश्यक जांच जैसे एक्सरे, एमआरआई और चुने गए इलाज यानी दवा, फिजियोथेरेपी, इंजेक्शन या सर्जरी पर निर्भर करता है।

 

घुटने के दर्द से छुटकारा के लिए सर्जरी से पहले और बाद में क्या ध्यान रखना है इसको लेकर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल और उनके जवाब (Frequently asked questions and answers about what to keep in mind before and after surgery to get relief from knee pain)

 


प्रश्न 1. क्या घुटने की सर्जरी हमेशा जरूरी होती है?
उत्तर: सर्जरी तब की जाती है, जब दवाएं, फिजियोथेरेपी, इंजेक्शन से राहत नहीं मिलती और दर्द असहनीय हो जाता है।


प्रश्न 2. घुटने की सर्जरी के बाद कब चलना शुरू कर सकते हैं?
उत्तर: ज्यादातर मामलों में मरीज को सर्जरी के 24 घंटे के भीतर खड़े हो सकते हैं। मरीज को वॉकर के सहारे चलवाया जाता है।


प्रश्न 3. क्या सर्जरी के बाद दौड़ना या व्यायाम करना संभव है?
उत्तर: दौड़ना सीमित रूप से और डॉक्टर की सलाह पर करना चाहिए। हल्के व्यायाम जैसे तैराकी, साइकलिंग, योग डॉक्टर की सलाह पर किया जाता है।


प्रश्न 4. क्या सर्जरी के बाद घुटना दोबारा खराब हो सकता है?
उत्तर: आधुनिक तकनीकों से किया गया नी रिप्लेसमेंट औसतन 15–20 साल तक चलता है। मगर अधिक वजन, गलत चाल या ज्यादा दबाव से घुटना जल्द घिस सकता है।


प्रश्न 5. क्या बुजुर्गों के लिए घुटने की सर्जरी सुरक्षित है?
उत्तर: अगर स्वास्थ्य रिपोर्ट्स, ब्लड प्रेशर, शुगर, हार्ट आदि सामान्य हों तो 70–80 वर्ष तक के लोग सर्जरी करवा सकते हैं।


प्रश्न 6. ऑपरेशन के बाद कितने समय में सामान्य जीवन शुरू हो सकता है?
उत्तर: रिकवरी में 3 से 6 महीने लगते हैं। यह व्यक्ति की आयु, शारीरिक स्थिति और अनुशासन पर निर्भर करता है।

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