जॉन्डिस या पीलिया शरीर में बिलीरुबिन की बढ़ती मात्रा के कारण होता है, जो लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने से बनता है। यह लिवर की बीमारी है और ग्रसित मरीज की स्किन और आंखों का पीला हो जाता है। अगर बिलीरुबिन की मात्रा बहुत अधिक हो जाए, तो यह पीलिया का कारण बन सकता है, जिससे लिवर की समस्याएं बढ़ सकती हैं। फेलिक्स हॉस्पिटल इस तरह की बीमारियों के इलाज में विशेषज्ञता रखता है और मरीजों को प्रभावी और उचित उपचार प्रदान करता है।


नवजात शिशुओं में पीलिया बहुत ही सामान्य होता है। इसे आमतौर पर नवजात शिशुओं में दो सप्ताह के भीतर ही दूर किया जा सकता है। हालांकि, अगर पीलिया का स्तर ज्यादा हो, तो बच्चे को अस्पताल में भर्ती किया जा सकता है। इससे पहले कि आप परेशान हों, जानें कि नवजात में पीलिया होने के कई कारण हो सकते हैं।पीलिया का इलाज दर्द रहित है फेलिक्स हॉस्पिटल के पास अनुभवी नियोनेटोलॉजिस्ट , पीडियाट्रिशियन , गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉक्टरों की एक टीम है, जो पीलिया का इलाज करती है। हम पीलिया पर आपके किसी भी सवाल का जवाब देने में सक्षम है। ज्यादा जानकारी के लिए हमें कॉल करें +91 9667064100

 

पीलिया कैसे होता है?

लिवर बिलीरुबिन को रक्त से अपशिष्ट पदार्थ के रूप में लेता है और इसकी रासायनिक संरचना को बदलकर इसके अधिकांश भाग को पित्त के माध्यम से मल के रूप में निकाल देता है। बिलीरुबिन, एक पीला-नारंगी पदार्थ है जो लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाता है। जब ये कोशिकाएं मर जाती हैं या टूट जाती हैं तो इनसे निकलने वाले बिलीरुबिन को लिवर एकत्रित कर फिल्टर करता है। जब लिवर यह काम ठीक से नहीं कर पाता तो शरीर में बिलीरुबिन की मात्रा बढ़ जाती है। इसी अतिरिक्त बिलीरुबिन के कारण पीलिया होता है। बिलीरुबिन के कारण ही पीलिया से ग्रसित मरीज की त्वचा और आंखों का रंग पीला दिखता है।

 

नवजात शिशु में पीलिया (Jaundice in Newborn Baby):

जन्म के समय से ही कई बच्चों में पीलिया होता है। हालांकि इसमें घबराने की कोई बात नहीं होती। यह कुछ दिनों बाद अपने आप ठीक हो जाता है। बच्चों में पीलिया के कई लक्षण दिखाई देतें हैं जैसे उल्टी और दस्त होना, 100 डिग्री से ज्यादा बुखार रहना, पेशाब का रंग गहरा पीला होना, चेहरे और आंखों का रंग पीला पड़ना आदि। बच्चों में पीलिया अधिकतर उनके लिवर के विकसित न होने के कारण होता है। इसके अलावा प्री-मैच्योर बेबी में पीलिया का खतरा अधिक होता है।

 

पीलिया रोग किसे हो सकता है?(Who is most likely to get jaundice?):

नवजात शिशुओं में पीलिया होने का सबसे अधिक खतरा होता है। 37 सप्ताह या 8.5 महीने से पहले जन्मे शिशु को पीलिया का खतरा अधिक होता है, क्योंकि अब तक उनका लिवर पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाता है। इसके अलावा ऐसे शिशु, जिन्हें मां का दूध पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलता है उन्हें भी इस बीमारी का खतरा होता है। इन सबके अलावा, जिन शिशुओं में सेप्सिस संक्रमण, आंतरिक रक्तस्राव, शिशु में लिवर की समस्या, जन्म के दौरान चोट लगना, शिशु की लाल रक्त कोशिकाओं में समस्या, खून के प्रकार का अलग होना जैसे आरएच रोग और आनुवंशिक समस्या जैसे कि जी6पीडी की कमी जैसी स्थितियों में पीलिया होने का जोखिम अधिक होता है।

 

पीलिया के प्रकार (Types of jaundice in Hindi):

  • प्री-हिपेटिक पीलिया (Pre-hepatic Jaundice) : इसमें लाल रक्त कोशिकाएं अत्यधिक मात्रा में टूटती हैं जिससे बिलीरुबिन का निर्माण अधिक मात्रा में होता है। इसके कारण लिवर, बिलीरुबिन को एकत्रित नहीं कर पाता और शरीर में फैलने लगता है। यह अतिरिक्त बिलीरुबिन पीलिया का कारण बनता है।
  • पैटोसेलुलर पीलिया (Patocellular Jaundice)  : इस स्थिति में लिवर की कोशिकाओं के क्षतिग्रस्त होने के कारण लिवर बिलीरुबिन को पर्याप्त मात्रा में एकत्रित नहीं कर पाता और बिलीरुबिन सिरोसिस हो जाता है। इसके कारण पित्त-ट्री के इंट्राहेपेटिक भाग में दबाव पड़ता है जो कोशिकाओं में रुकावट का कारण बनता है। इस रुकावट के कारण लिवर कोशिकाएं शिथिल पड़ जाती हैं जो हेपैटोसेलुलर पीलिया का कारण बनती है।यह पैटोसेलुलर पीलिया का अर्थ है |
  • पोस्ट-हिपेटिक पीलिया (Post-hepatic Jaundice) : इस स्थिति में पित्त नलिकाएं छतिग्रस्त हो जाती हैं और उनमें एक प्रकार की सूजन आ जाती है जिससे पित्त नलिकाएं ब्लॉक हो जाती हैं। इसके कारण पित्त, पित्ताशय थैली से पाचनतंत्र तक नहीं पहुंच पाता। यह पोस्ट-हिपेटिक पीलिया का कारण बनता है।

 

पीलिया के लक्षण (Symptoms of jaundice in Hindi):

 

symptoms of jaundice

 

पीलिया, जिसे अंग्रेज़ी में जॉन्डिस के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसी स्थिति है जिसमें रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा अनायास हो जाती है, जिससे त्वचा, आखों और मुंह का पीलापन दिखाई देता है। यह स्थिति आमतौर पर जाँच और समय पर उपचार के बावजूद, अधिक गंभीर रूप ले सकती है। पीलिया के लक्षण विभिन्न हो सकते हैं जैसे कि थकान, पेट में दर्द, वजन में गिरावट, उल्टी और जी मिचलाना, बुखार, भूख की कमी, कमजोरी, शरीर में खुजली, नींद की कमी, फ्लू जैसे लक्षण, ठंड लगना, गहरे रंग का पेशाब, धूसर या पीले रंग का मल, और त्वचा के रंग में परिवर्तन। पीलिया के लक्षणों (Symptoms of jaundice in hindi) के साथ साथ इसके कारण जानना भी बहुत आवश्यक होते है | अधिक बिलीरुबिन की मात्रा के कारण, ये समस्याएं विकसित हो सकती हैं, जो अन्य गंभीर बीमारियों जैसे कि क्रोनिक हेपेटाइटिस, तीव्र हेपेटाइटिस, पायोडर्मा गैंग्रीनोसम, और पॉलीआर्थ्राल्जिया जैसी समस्याओं का कारण बन सकती हैं। इसलिए, अगर आपको इन लक्षणों में से कुछ भी महसूस हो रहे हैं, तो आपको तुरंत एक चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए।

 

पीलिया के कारण (Causes of jaundice in Hindi):

  • हेपेटाइटिस: हेपेटाइटिस के कारण पीलिया की शिकायत हो सकती है। यह एक लिवर की बीमारी है जो वायरल इन्फेक्शन, ड्रग्स के इस्तेमाल या ऑटोइम्यून डिजीज के कारण हो सकती है।पीलिया के लक्षणों के साथ साथ इसके कारण भी बहुत आवश्यक होते है | 
  • लिवर की सूजन: सूजन के कारण लिवर, बिलीरुबिन को न तो सही तरीके से एकत्रित कर पाता है और न ही शरीर से बाहर निकाल पाता है। इस स्थिति में लिवर में बिलीरुबिन की मात्रा बढ़ने लगती है और पीलिया हो जाता है। 
  • शराब से संबंधित लिवर की बीमारी: अधिक शराब पीने के कारण लिवर को नुकसान पहुंच सकता है। अधिक शराब के सेवन से लिवर से संबंधित होने वाले रोग अल्कोहलिक हेपेटाइटिस और अल्कोहलिक सिरोसिस हो सकते हैं। इससे पीलिया होने की संभावना होती है।
  • हेमोलिटिक एनीमिया: इस स्थिति में शरीर में बड़ी मात्रा में लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने से बिलीरुबिन का निर्माण होता है और पीलिया की स्थिति निर्मित होती है।
  • गिल्बर्ट सिंड्रोम: यह एक आनुवांशिक विकार है। इस स्थिति में हमारे शरीर में पाए जाने वाले एंजाइम, पित्त को कम मात्रा में फिलटर कर पाते हैं। उनकी फिल्टर करने की क्षमता कम हो जाती है।पीलिया के लक्षणों(Symptoms of jaundice in hindi) के साथ साथ इसके कारण भी बहुत आवश्यक होते है | 
  • पित्त नलिकाओं के ब्लॉकेज: ये पतली नलिकाएं होती हैं जो लिवर और पित्ताशय से पित्त को छोटी आंत में ले जाती हैं। ये नलिकाएं गाल स्टोन, कैंसर या लिवर के अन्य गंभीर रोगों के कारण ब्लॉक हो जाती है। इस स्थिति में पीलिया हो सकता है।
  • पैंक्रियाटिक कैंसर: यह पित्त नली को बंद कर सकता है और पीलिया का कारण बन सकता है। यह महिलाओं में होने वाला 10वां और पुरुषों में होने वाला 9वां सबसे कॉमन कैंसर है।
  • दवाओं के कारण: एसिटामिनोफेन, पेनिसिलिन, गर्भनिरोधक गोलियां और स्टेरॉयड लिवर की बीमारी से जुड़ी हैं। यह पीलिया का कारण बन सकती है। 

 

पीलिया होने पर डॉक्टर से कब मिलें? (When to see a doctor if you have jaundice disease):

पीलिया के निम्न लक्षण दिखने पर डॉक्टर को तुरंत दिखाना चाहिए:

 

  • आंखों में पीलापन आना
  • त्वचा का पीला पड़ना
  • थकान महसूस होना
  • पेट दर्द होना
  • वजन घटना
  • भूख न लगना
  • बुखार आना

 

पीलिया के लिए टेस्ट (Tests for Jaundice in hindi) :

 

  • बिलीरुबिन टेस्ट
  • कम्प्लीट ब्लड काउंट टेस्ट (CBC)
  • हेपेटाइटिस ए, बी और सी की जांच
  • एमआरआई स्कैन
  • अल्ट्रासाउंड
  • सीटी स्कैन
  • एंडोस्कोपिक रेट्रोग्रेड कोलैंजियोंपैंक्रिटोग्राफी
  • लिवर बायोप्सी

 

 

फेलिक्स हॉस्पिटल पीलिया के इलाज में विशेषज्ञ डॉक्टरों की व्यापक टीम के साथ अनुभवी पीडियाट्रिशियन और गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट है। हम इस बीमारी से जुड़े सभी सवालों का सही और समझाया जवाब देने में सक्षम हैं। अधिक जानकारी के लिए कृपया हमें +91 9667064100 पर संपर्क करें।

 

 

पीलिया का इलाज (Treatment of Jaundice) :


पीलिया का इलाज उसके कारण पर निर्भर करता है। पीलिया की शुरुआती स्टेज में इसके कोई लक्षण नहीं दिखते। इसकी वजह यह है कि यह खुद में एक बीमारी नहीं बल्कि यह कई अन्य गंभीर बीमारियों के कारण होता है। पीलिया के कुछ मामलों में इसके खास इलाज की जरूरत नहीं होती। इन्हें सामान्य उपचार और अपने आहार में बदलाव करके ठीक किया जा सकता है। जबकि इसकी सीरियस स्टेज में मरीज को हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ता है। डॉक्टरी इलाज के जरिए इसे ठीक किया जा सकता है। कब्ज, सूजन, गैस, पेट दर्द, दस्त, मतली और उल्टी होना पीलिया के इलाज के साइड इफेक्ट है। यह कुछ मरीजों में देखने को मिल सकते हैं।

 

पीलिया का शरीर पर पड़ने वाला नकारात्मक प्रभाव (Negative effects of jaundice on the body) :

  • लिवर इन्फेक्शन
  • पित्ताशय या अग्न्याशय की समस्या
  • लाल रक्त कोशिकाओं का अधिक मात्रा में टूटकर लिवर में प्रवेश करना
  • बिलीरुबिन का पाचन तंत्र में न पहुंचना
  • वायरस या परजीवी जिससे लिवर का संक्रमण हो सकता है
  • रक्त से संबंधित विकार
  • पैंक्रायटिक कैंसर
  • क्रोनिक लिवर की बीमारी
  • गर्भावस्था के समय होने वाला पीलिया
     

पीलिया के कारण होने वाली दूसरी बीमारियां :

  • फैटी लिवर: इस स्थिति में लिवर में फैट जमा होने लगता है। यह अनियमित खानपान, फैटी आहार, तनाव, शराब का सेवन करने समेत अन्य कारणों से हो सकता है।
  • सिरोसिस रोग: शराब का सेवन, वसायुक्त भोजन और खराब जीवनशैली के कारण लिवर में रैश बनने लगते हैं। यह रैश कोशिकाओं को ब्लॉक कर देते हैं, इसे फाइब्रोसिस कहते हैं। इस स्थिति में लिवर अपने वास्तविक आकार में ना रहकर सिकुड़ने लगता है।
  • लिवर फेल्योर:इस स्थिति में लिवर काम करना बंद कर देता है।
  • एक्यूट लिवर फेल्योर: इस स्थिति में मलेरिया, टायफॉइड, हेपेटाइटिस- ए, बी, सी, डी व ई जैसे वायरल, बैक्टीरियल या फिर किसी अन्य रोग से हुए संक्रमण के कारण लिवर की कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं।
  • क्रोनिक लिवर फेल्योर: लिवर की लंबे समय चली आ रही बीमारी के कारण यह स्थिति निर्मित होती है।

 

एनीमिया और पीलिया के लक्षणों में अन्तर (Difference between Anemia and Jaundice in Hindi): 

एनीमिया और पीलिया के लक्षणों में निम्न मुख्य अंतर ये हैंः

 

  • एनीमिया रोग में रोगी का रंग सफेद-पीला हो जाता है, लेकिन पीलिया में रोगी की त्वचा, आंख, नाखून और मुंह का रंग हल्दी की तरह पीला हो जाता है।
  • एनीमिया खून की कमी के कारण होता है, लेकिन पीलिया में पित्ताशय से निकलने वाला पित्त, खून में मिलकर पूरे शरीर में फैलता है।
  • एनीमिया में भूख लगती है, लेकिन पीलिया में भूख नहीं लगती है।
  • एनीमिया लाल रक्त कोशिकाओं में कमी है। एनीमिया कई चीजों के कारण हो सकता है लेकिन सोचने का एक आसान तरीका यह है कि या तो यह उत्पादन में कमी या विनाश में वृद्धि के कारण होता है। पीलिया बिलीरुबिन में वृद्धि है। बिलीरुबिन हीमोग्लोबिन का एक उपोत्पाद है, जो लाल रक्त कोशिकाओं और अन्य प्रोटीन में मौजूद होता है। बिलीरुबिन को लीवर की मदद से संसाधित और उत्सर्जित किया जाता है।एनीमिया और पीलिया के लक्षणों में अन्तर (Anemia and Jaundice Difference in hindi) बहुत से होते है जो मुख्य रूप से हर कोई नहीं जानते है 
  • लाल रक्त कोशिकाओं का स्तर बढ़ जाता है, तो हीमोग्लोबिन भी बढ़ जाता है जिसके परिणामस्वरूप बिलीरुबिन उत्पादन बढ़ जाता है। यह बिलीरुबिन को संसाधित करने की यकृत की क्षमता को प्रभावित कर सकता है और इसके परिणामस्वरूप रक्त में बिलीरुबिन बढ़ सकता है और बदले में पीलिया हो सकता है।
  • एनीमिया के लक्षणों में थकान, त्‍वचा का पीलापन, सांस फूलना, सिर घूमना, चक्‍कर आना, या दिल की तेज़ धड़कन शामिल हो सकते हैं। कई लोगों को अच्छा महसूस न करना, चक्कर आना, थकान, या सिर घूमना, दिल की तेज़ धड़कन या धकधकी, त्वचा का पीलापन, नाज़ुक नाखून, सांस फूलना, या सिरदर्द होने जैसे लक्षण भी मिलेंगे। 

 

पीलिया से होने वाले जोखिम (Risks of jaundice disease in Hindi): 

  • क्रोनिक लिवर हेपेटाइटिस
  • हेपेटाइटिस A, B, C या E जैसे वायरल संक्रमण
  • एपस्टीन-बार वायरस संक्रमण की तीव्रता
  • पायोडर्मा गैंग्रीनोसम (एक प्रकार का त्वचा रोग)
  • पॉलीआर्थ्राल्जिया (एक प्रकार की सूजन)
  • बाइल डक्ट की रुकावट यह गालस्टोन या ट्यूमर के कारण होता है
  • जेनेटिक मेटाबोलिक डिफेक्ट्स
  • ऑटोइम्यून डिसऑर्डर
  • एसिटामिनोफेन (गर्भ निरोधक और स्टेरॉयड जैसी कुछ दवाओं के कारण होने वाला विकार)
  • हीमोलिटिक एनीमिया

 

पीलिया कितने दिन रहता है(How long does jaundice):

आमतौर पर वयस्को में पीलिया का इलाज उसके लक्षणों व कारणों पर निर्भर करता है। यदि पीलिया तीन हफ्ते या उससे अधिक समय तक बना रहता है तो डॉक्टर को तुरंत दिखाना चाहिए। इसके लक्षण जितने कम दिखेंगे पीलिया उतनी जल्दी ठीक हो सकता है। पीलिया शरीर में बिलिरुबीन का स्तर बढ़ने के कारण होने वाली बीमारी है। स्तनपान करने वाले शिशुओं में पीलिया एक महीने तक रह सकता है। जबकि ऐसे बच्चे जो फॉर्मूला पर होते हैं उनमें पीलिया दो सप्ताह तक रह सकता है।

 

पीलिया से बचने के उपाय (Ways to avoid jaundice):

  • डाइट में दूध शामिल करें और नियमत दूध पिएं।
  • कम से कम 8 गिलास पानी पिएं।
  • हाई फाइबर युक्त खाद्य पदार्थों को अपने आहार में शामिल करें।
  • सुरक्षित और स्वस्थ भोजन व साफ पानी का सेवन करें।
  • संक्रमण के दौरान वसायुक्त और तेल से बने खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
  • अच्छी तरह से हाइड्रेटेड रहने के लिए तरल पदार्थों का सेवन करें।
  • कार्बोहाइड्रेट युक्त खाद्य पदार्थों के साथ पाचन को बेहतर बनाने वाले फलों को डाइट में शामिल करें।
  • अधिक शराब न पिएं।
  • हेपेटाइटिस के टीके लगवाएं।
  • नशीली दवाओं का उपयोग न करें।
  • असुरक्षित यौन संबंध से बचें।

नवजात शिशुओं में पीलिया बहुत आम बात है। आमतौर पर नवजात शिशुओं में पीलिया होने का खतरा ज्यादा होता है। हालांकि, यह बच्चे में एक से दो सप्ताह के भीतर अपने आप आसानी से ठीक हो जाता है। अगर पीलिया का स्तर ऊंचा है, तो बच्चे को पीलिया हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ सकता है। ऐसे में आपके मन में भी यही ख्याल आता होगा कि इतनी देखभाल के बाद भी आखिर बेबी को पीलिया क्यों हो गया ।

 

पीलिया के लिए उपयुक्त आहार और देखभाल के बारे में अधिक जानने के लिए हमारी 'जॉन्डिस डाइट चार्ट' पर जाएँ और सही दिशा में कदम उठाएँ।

 

नवजात शिशुओं में पीलिया के कुछ घरेलू नुस्खे

जन्म के समय बच्चे को पीलिया (jaundice) होना सामान्य बात है। हालांकि, इसके उपचार के कई तरीके हैं,जिन्हें आप नवजात शिशुओं में पीलिया के इलाज के लिए आजमा सकते हैं-


शिशु को बार-बार स्तनपान कराएं : यदि आपके नवजात शिशु को पीलिया है, तो उसे बार-बार दूध पिलाएं। नवजात शिशु को बार-बार स्तनपान कराने से रक्तप्रवाह बढ़ता है और बिलीरुबिन के मल और मूत्र के जरिए बाहर निकालने में मदद मिलती है। बता दें कि पीलिया होने पर बच्चे बहुत सोते हैं। अगर आपके बच्चे को पीलिया है, तो वह भी बहुत सो सकता है। लेकिन उसे दूध पिलाने या खाने के लिए नियमित समय जगाएं।

मां को भी लेना चाहिए स्वस्थ आहार : इसके अलावा जो मां नवजात शिशुओं को स्तनपान कराती है उन्हें हेल्दी डाइट को फॉलो करना चाहिए। मां को अपने आहार में ताजा, पौष्टिक, संतुलित भोजन शामिल करना चाहिए। इसके लिए हरी पत्तेदार सब्जियां, सप्ताह में एक बार सी फूड, हेल्दी फैट वाले खाद्य पदार्थ, सीड्स, नट्स, फल, मांस और फाइबर युक्त आहार खाएं। एक्सपर्ट का मानना है कि मां जब अपने बच्चे को स्तनपान कराती है, तब दोनों की स्कीन एकदूसरे के संपर्क में आती है। इससे भी बिलीरूबिन का स्तर घटता है।

 

निष्कर्ष (Conclusion):


पीलिया एक ऐसी स्थिति है (jaundice meaning in hindi) जिसमें बिलीरुबिन, पीले-नारंगी पित्त वर्णक के उच्च स्तर के कारण त्वचा, आंखों का सफेद भाग और श्लेष्मा झिल्ली पीली हो जाती है। पीलिया के कई कारण होते हैं, जिनमें हेपेटाइटिस, पित्त पथरी और ट्यूमर शामिल हैं। वयस्कों में, पीलिया का आमतौर पर इलाज करने की आवश्यकता नहीं होती है। पीलिया को रोकने का कोई स्पष्ट तरीका नहीं है, क्योंकि यह विभिन्न स्थितियों के कारण हो सकता है। लेकिन अंतर्निहित बीमारियों को रोकने के तरीके हैं। लीवर विकारों के जोखिम को कम करने के लिए शराब का सेवन कम करें। हेपेटाइटिस संक्रमण के खतरे को कम करने के लिए अच्छी स्वच्छता और सुरक्षित यौन संबंध बनाए।

 

फेलिक्स समर्थन :
 

पीलिया का इलाज दर्द रहित है फेलिक्स हॉस्पिटल के पास अनुभवी नियोनेटोलॉजिस्ट, पीडियाट्रिशियन गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉक्टरों की एक टीम है, जो पीलिया का इलाज करती है। हम पीलिया पर आपके किसी भी सवाल का जवाब देने में सक्षम है। ज्यादा जानकारी के लिए हमें कॉल करें +91 9667064100

 

पीलिया पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked question on jaundice) :

  • क्या पीलिया खतरनाक हो सकता है ?

-हां अगर लंबे समय तक इलाज न किया जाए तो पीलिया बेहद घातक हो सकता है। कुछ मामलों में पीलिया से मृत्यु भी हो सकती है। यह महत्वपूर्ण है कि आप पीलिया की शुरुआत का पता चलते ही तुरंत चिकित्सा सहायता लें।

 

  • क्या पीलिया को सही किया जा सकता है ?

-हां अगर समय रहते इसके सही कारण का पता चल जाए तो पीलिया ठीक हो सकता है। पीलिया के लिए विभिन्न उपचार विधियों का उपयोग किया जाता है ताकि इसे कुछ ही समय में ठीक किया जा सके।

 

  • क्या बच्चों का पीलिया हो सकता है ?

-नवजात शिशुओं को पीलिया होने का खतरा सबसे अधिक होता है। चूंकि उनके लीवर अभी भी विकास के चरण में हैं, इसलिए पीलिया से पीड़ित बच्चों का इलाज करना मुश्किल हो जाता है। चिकित्सकीय भाषा में नवजात पीलिया के रूप में जानी जाने वाली यह स्थिति बहुत घातक साबित हो सकती है और अंततः शिशु की मृत्यु भी हो सकती है।

 

  • पीलिया रोग की पहचान कैसे करें?

-पीलिया के सबसे मुख्य लक्षणों में आंखों के सफेद हिस्से का पीला पड़ना है। अगर आपकी आंखें पीली हो गयी हैं तो आपको तुरंत डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए। डॉक्टर आपके लक्षणों और जांच की मदद से पीलिया की पुष्टि करते हैं।

 

  • पीलिया के लिए कौन सा टेस्ट होता है?

-पीलिया के लिए कई प्रकार के टेस्ट किए जाते हैं जिसमें बिलीरुबिन टेस्ट, कम्प्लीट ब्लड काउंट टेस्ट, हेपेटाइटिस ए, बी और सी की जांच, एमआरआई स्कैन, अल्ट्रासाउंड, सिटी स्कैन, एंडोस्कोपिक रेट्रोग्रेड कोलैंजियोंपैंक्रिटोग्राफी और लिवर बायोप्सी आदि शामिल हैं।


यदि आप नोएडा में सर्वश्रेष्ठ अस्पताल की तलाश में हैं, तो फेलिक्स अस्पताल जाएँ या +(91)9667064100 पर कॉल करें।

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