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अधिकतर लोग इसे सिर्फ कमजोरी, थकान या भूख से जोड़ते हैं, लेकिन कई बार यह शरीर में चल रही किसी गंभीर प्रक्रिया का संकेत हो सकता है। इस ब्लॉग में हम चक्कर आने के पीछे छिपे संभावित कारणों को रूमेटोलॉजी के दृष्टिकोण से समझने की कोशिश करेंगे, ताकि इसे सिर्फ "कमजोरी" कहकर नजरअंदाज करने की गलती न हो।
अगर आपको या ऍकर परिवार में किसी को चक्कर थकान दर्द महसूस होता है तो एक बार अपने पास के अच्छे रूमेटोलॉजी हॉस्पिटल में जाकर जाँच अवश्य करवाएं।
चक्कर आना अपने आप में कोई बीमारी होती है। बल्कि यह अन्य स्वास्थ्य समस्या का संकेत है। इसके पीछे कई संभावित कारण हैं
गर्मी में पसीना ज्यादा निकलने या पानी कम पीने पर ब्लड वॉल्यूम घटता है। जिससे चक्कर आते हैं।
ऑक्सीजन की कमी से दिमाग तक पर्याप्त सप्लाई नहीं पहुंचती है। जिससे कई बार सिर हल्का लगता है। इस कारण कई बार चक्कर आता है।
अचानक उठने पर बीपी गिरने से दिमाग को क्षणिक रूप से कम खून मिलता है। इस कारम कई बार चक्कर आता है।
लंबे समय तक काम करना या नींद पूरी न होना भी चक्कर का कारण बनता है।
लंबे समय तक कुछ न खाना या डायबिटीज़ में ब्लड शुगर गिरने से चक्कर आते हैं।
बहुत से लोग चक्कर को केवल सामान्य शारीरिक कमजोरी मानते हैं। मगर ऑटोइम्यून बीमारियां रूमेटोलॉजिकल श्रेणी में आती हैं। इन बीमारियों में इम्यून सिस्टम अपने ही शरीर पर हमला करता है। जिससे दिमाग, नसें, रक्त वाहिकाएं प्रभावित होती हैं।
एसएलई एक गंभीर ऑटोइम्यून रोग होता है। जिसमें शरीर की इम्यून प्रणाली खुद के ऊतकों पर हमला करती है। अगर यह मस्तिष्क को प्रभावित करता है, तो इसे न्यूरो-साइकियाट्रिक ल्यूपस (एनपीएसएलई) कहते हैं। इसके लक्षणों में चक्कर आना, भ्रम, स्मृति में कमी, सिरदर्द और दौरे आते हैं। यह ब्रेन में सूजन, रक्त प्रवाह की रुकावट या न्यूरोट्रांसमीटर गड़बड़ी के कारण होता है।
वास्कुलाइटिस वह स्थिति है। जिसमें शरीर की रक्त वाहिकाओं में सूजन आती है। जब यह सूजन मस्तिष्क तक खून ले जाने वाली नसों को प्रभावित करती है। ब्रेन को ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित होती है। इस कारण चक्कर, स्ट्रोक-जैसे लक्षण और न्यूरोलॉजिकल असंतुलन होते हैं।
सोजोग्रेन सिंड्रोम आमतौर पर आंखों और मुंह की सूखापन से जुड़ा जाता है। यह परिधीय और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (सीएनएस) को भी प्रभावित करता है। इसमें न्यूरोपैथी, झनझनाहट, सुन्नपन और चक्कर जैसे लक्षण देखे जाते हैं। यह तंत्रिका तंत्र पर इम्यून अटैक के कारण होता है।
इम्यून सेल्स ब्रेन की कोशिकाओं और नसों में सूजन पैदा कर सकते हैं। जिससे उनके कार्य प्रभावित होते हैं।
ऑटोइम्यून रोगों में शरीर ऐसे एंटीबॉडी बनाता है जो ब्रेन या नर्व टिश्यू को नुकसान पहुंचते हैं।
सूजनग्रस्त रक्तवाहिकाएं ब्रेन में खून की सप्लाई घटा देती हैं, जिससे चक्कर और स्ट्रोक जैसे लक्षण दिखते हैं।
जब चक्कर का कारण केवल कमजोरी नहीं बल्कि इम्यून सिस्टम का हमला हो। जब किसी मरीज को बार-बार चक्कर आते हैं, खासकर जब वह पहले से रूमेटोलॉजिकल लक्षण जैसे जोड़ दर्द, थकान, स्किन रैश, आंखों का सूखना से पीड़ित हो रूमेटोलॉजिकल जांच जरूरी होती है।
एएनए, एंटी-डीएसडीएनए ल्यूपस की पुष्टि के लिए होती है। एमआरई ब्रेन में सूजन, लक्षणों के अनुसार सफेद पदार्थ में परिवर्तन के लिए होती है। सीएसएफ टेस्ट ब्रेन और स्पाइनल फ्लुइड में संक्रमण/सूजन के संकेत की जांच के लिए होता है। न्यूरोकॉग्निटिव टेस्टिंग स्मृति, ध्यान और समझ की जांच के लिए होता है।
एएनसीए परीक्षण (पी-एएनसीए, सी-एएनसीए) जांच वास्कुलाइटिस की पुष्टि के लिए होती है। ईएसआर/सीआरपी जांच शरीर में सूजन के स्तर की जांच के लिए होती है। एमआरआई/सीटी एंजियोग्राफी जांच मस्तिष्क की रक्तवाहिकाओं की स्थिति देखने के लिए होती है। बायोप्सी जांच प्रभावित टिश्यू की पुष्टि के लिए होती है।
एंटी-रो (एसएसए), एंटी-ला (एसएसबी) जांच सोजोग्रेन की पुष्टि के लिए होती है। तंत्रिका चालन अध्ययन (एनसीवी/ईएमजी) जांच नर्व डैमेज की पहचान के लिए होती है। एमआरआई ब्रेन या स्पाइन जांच केंद्रीय तंत्रिका तंत्र प्रभावित होती है। शिर्मर टेस्ट/ होंठ बायोप्सी सोजोग्रेन जांच डायग्नोसिस सपोर्ट करने के लिए होती है।
जब चक्कर आने का कारण सामान्य कमजोरी न होकर ऑटोइम्यून या रूमेटोलॉजिकल बीमारी हो, तो इलाज केवल लक्षणों को नहीं, बल्कि जड़ तक पहुंचने वाला होना चाहिए। इसके लिए एक बहुपक्षीय दृष्टिकोण अपनाया जाता है।
यदि कारण एसएलई, वास्कुलाइटिस या सोजोग्रेन सिंड्रोम हो, तो इम्यूनोसप्रेसिव दवाएं दी जाती है। जैसे हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, अजैथियोप्रिन, मेथोट्रेक्सेट, या साइक्लोफॉस्फेमाइड इम्यून सिस्टम की अतिसक्रियता को नियंत्रित करते हैं।
कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स जैसे प्रेडनिसोलोन सूजन कम करते हैं। ब्रेन या नसों को राहत देते हैं।
विटामिन बी12, डी3 और न्यूरो-सपोर्टिव सप्लीमेंट्स नसों के कार्य को सुधारने में सहायक होता है।
बायोलॉजिक्स जैसे रिटक्सिमैब जटिल या गंभीर मामलों में प्रयुक्त होता है।
दिनभर पर्याप्त (2.5–3 लीटर) पानी पीना चाहिए।
कम से कम 7–8 घंटे की गहरी नींद जरूरी है।
आयरन, विटामिन बी12, डी और ओमेगा-3 से भरपूर संतुलित भोजन जरूरी है।
ध्यान, प्राणायाम, और हल्की कसरत से न्यूरोइम्यून संतुलन बेहतर होता है।
कैफीन और एल्कोहॉल से बचाव यह ये नसों को उत्तेजित कर सकते हैं।
प्रारंभिक चरण में पहचान और इलाज शुरू हो जाए, तो 70–90% मामलों में लक्षणों में स्पष्ट सुधार देखा गया है। ब्रेन या नसों की क्षति स्थायी बनने से पहले इलाज जरूरी है। नियमित फॉलोअप और दवाओं का पालन बहुत ज़रूरी है। जीवनशैली सुधारों से दवा की मात्रा घटाई जा सकती है और बार-बार चक्कर आने की समस्या कम हो सकती है।
चक्कर आना कभी-कभी मामूली होता है। अगर यह बार-बार हो रहा है। खासकर जब आप किसी ऑटोइम्यून या रूमेटोलॉजिकल बीमारी से ग्रस्त हैं सावधानी जरूरी है।
बार-बार आने वाले या अचानक संतुलन बिगाड़ देने वाले चक्कर को अनदेखा नहीं करें। यह ब्रेन, नसों या रक्त प्रवाह से जुड़ी किसी गंभीर समस्या की ओर संकेत होता है।
कब आया ? कितनी देर रहा ? क्या करते समय आया? कोई अन्य लक्षण साथ थे ? यह डायरी डॉक्टर को लक्षणों का पैटर्न समझने में बहुत मदद करती है। मोबाइल ऐप्स का भी उपयोग किया जा सकते हैं।
तनाव इम्यून सिस्टम को और अधिक असंतुलित करता है। योग, ध्यान, प्राणायाम, गहरी सांसें सभी मानसिक स्थिरता लाते हैं। इसलिए पर्याप्त नींद के अलावा हल्का व्यायाम दिनचर्या में शामिल करना चाहिए।
डिहाइड्रेशन चक्कर का आम कारण है। इसलिए नियमित रूप से पानी पिएं। आयरन, विटामिन बी12, डी और मैग्नीशियम युक्त भोजन चक्कर को रोकने में मदद करते हैं।
दवाएं समय पर लें और डॉक्टर द्वारा निर्धारित सभी जांचें करवाएं। लक्षणों को छिपाने की बजाय खुलकर बताएं।
रूमेटोलॉजिस्ट एक विशेषज्ञ चिकित्सक होते हैं जो रूमेटोलॉजिकल और ऑटोइम्यून रोगों की पहचान, उपचार और दीर्घकालिक प्रबंधन में दक्ष होते हैं। ये बीमारियां मुख्य रूप से जोड़ों, मांसपेशियों, हड्डियों और संयोजी ऊतकों को प्रभावित करती हैं। फेलिक्स हॉस्पिटल्स की अनुभवी रूमेटोलॉजिस्ट डॉ. किरण सेठ इस क्षेत्र में 20 वर्षों से अधिक का अनुभव रखती हैं और जटिल रूमेटोलॉजिकल व ऑटोइम्यून रोगों का सटीक निदान व प्रभावी इलाज प्रदान करती हैं।
चक्कर आना हमेशा केवल कमजोरी, थकान या भूख का नतीजा नहीं होता है। यह हमारे शरीर के इम्यून सिस्टम, नसों, या ब्रेन की गहराई में चल रही समस्या का संकेत भी होता है। खासकर जब यह बार-बार या बिना किसी स्पष्ट कारण के हो। सही समय पर सही जांच, इलाज, और विशेषज्ञ डॉक्टर से संपर्क न केवल लक्षणों को नियंत्रित कर सकते हैं। साथ ही जीवन की गुणवत्ता और सुरक्षा को बेहतर बना सकते हैं।
प्रश्न 1. क्या चक्कर आना केवल शरीर की कमजोरी के कारण होता है ?
उत्तर: डिहाइड्रेशन, लो ब्लड प्रेशर और एनीमिया इसके सामान्य कारण आते हैं। अगर चक्कर बार-बार, अचानक या अन्य लक्षणों के साथ हो तो यह ब्रेन, नसों या इम्यून सिस्टम से जुड़ी समस्या होती है।
प्रश्न 2. क्या रूमेटोलॉजिकल बीमारियों में भी चक्कर आ सकते हैं ?
उत्तर: बीमारियां जैसे एसएलई (ल्यूपस), वास्कुलाइटिस और सोजोग्रेन सिंड्रोम तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर सकती हैं। जिस कारण चक्कर, झुनझुनी या संतुलन में गड़बड़ी होती है।
प्रश्न 3. कब चक्कर आने पर डॉक्टर को दिखाना चाहिए ?
उत्तर: अगर चक्कर के साथ धुंधला दिखना या बोलने में कठिनाई, संतुलन खोना या गिरना, स्मृति या सोचने की क्षमता में कमी हो डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें।
प्रश्न 4. क्या एसएलई या वास्कुलाइटिस ब्रेन को प्रभावित कर सकते हैं ?
उत्तर: एसएलई में न्यूरोलॉजिकल रूप और वास्कुलाइटिस में ब्रेन की रक्तवाहिकाओं में सूजन से होती है। जिस कारण चक्कर जैसे लक्षण दिखते हैं।
प्रश्न 5. चक्कर से जुड़े कौन-कौन से टेस्ट किए जाते हैं ?
उत्तर: एमआरआई जांच ब्रेन/ एमआरए ब्रेन में सूजन या ब्लॉकेज देखने के लिए होती है। एएनए, एंटी-डीएसडीएनए, एएनसीए जांच ऑटोइम्यून बीमारियों की पुष्टि के लिए होती है। तंत्रिका चालन अध्ययन जांच नर्वस सिस्टम की जांच होती है। विटामिन बी12, डी3, सीबीसी जांच पोषक तत्वों की स्थिति और खून की जांच होती है।
प्रश्न 6. क्या चक्कर का इलाज संभव है ?
उत्तर: जब सही कारण की पहचान हो जाए तो इम्यूनोसप्रेसिव दवाएं, स्टेरॉइड्स, विटामिन सप्लीमेंट्स और जीवनशैली में बदलाव से मरीज को काफी राहत मिलती है। समय पर इलाज से न्यूरोलॉजिकल नुकसान को रोक सकते हैं।
प्रश्न 7. क्या जीवनशैली में बदलाव से चक्कर कम हो सकते हैं ?
उत्तर: पर्याप्त पानी पीना, नींद पूरी करना, तनाव से बचाव और पोषण युक्त डाइट से लक्षणों कर कर सकते हैं। रिकवरी को तेज किया जा सकता है।