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अस्थमा होने पर इन्हेलर तात्कालिक राहत देते हैं। मगर अधिक उपयोग से न सिर्फ अस्थमा का नियंत्रण बिगड़ता है। बल्कि शरीर पर अन्य गंभीर दुष्प्रभाव होता है। इसलिए सही जानकारी गाइडलाइन आधारित इलाज और डॉक्टर की सलाह से ही इन्हेलर का प्रयोग करना चाहिए। याद रखें सावधानी और नियमित देखभा अस्थमा से सुरक्षित रखता है। इसलिए आज ही शहर के किसी अच्छे पल्मोनोलॉजी डॉक्टर से सलाह लें(Consult a good pulmonology doctor)। समय पर चेकअप करवाना बहुत ज़रूरी है। इस ब्लॉग में हम अस्थमा इनहेलर के सही इस्तेमाल और इसके ज़्यादा इस्तेमाल से होने वाले खतरों के बारे में चर्चा करेंगे।
ज्यादा जानकारी के लिए हमें कॉल करें +91 9667064100.
अस्थमा के इलाज में इन्हेलर का महत्त्व (Importance of Inhalers in the Treatment of Asthma)
स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव (Adverse Effects on Health)
क्या कहती है पल्मोनोलॉजी गाइडलाइन ? (What does the Pulmonology Guideline Say?)
इन्हेलर के उपयोग में सावधानी (Precautions while Using the Inhaler)
वैकल्पिक उपाय और जीवनशैली सुधार (Alternative Measures and Lifestyle Modifications)
अस्थमा(Asthma) एक क्रॉनिक श्वसन बीमारी है। जिस कारण श्वसन नलिकाएं संवेदनशील होती हैं। यह धूल, परागकण, धुआं, ठंडी हवा या व्यायाम के संपर्क में आकर सिकुड़ती हैं। इससे व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ, खांसी, छाती में जकड़न और सांस फूलने जैसे लक्षण दिखते हैं। अस्थमा का स्थायी इलाज नहीं है। सही प्रबंध और दवा से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। जिससे सामान्य जीवन जीने में मदद मिलती है। अस्थमा के इलाज में इन्हेलर दो प्रमुख प्रकार हैं। जिनकी भूमिका अलग-अलग है।
तत्काल राहत देने वाले इन्हेलर में सैल्बुटामोल ब्रोंकोडायलेटर होते हैं। जब अचानक सांस फूलने लगे तब यह श्वसन नलिकाओं को तुरंत चौड़ा करते हैं। इसे आवश्यकता अनुसार लेते हैं। इसे आमतौर पर रेस्क्यू इन्हेलर कहते हैं। रेस्क्यू इन्हेलर तत्काल राहत देते हैं। मगर अस्थमा को पूरी तरह से ठीक नहीं करते है।
दीर्घकालिक नियंत्रण वाले इन्हेलरः
दीर्घकालिक नियंत्रण वाले इन्हेलर में इनहेल्ड कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स (inhaled corticosteroids) का कॉम्बिनेशन होता है। जो फेफड़ों की सूजन को कम करते हैं। अस्थमा को नियंत्रित रखते हैं। इन्हें नियमित रूप से लिया जाता है। भले लक्षण न हों। इन्हें नियंत्रक इन्हेलर कहते है ।
अस्थमा के इलाज में इन्हेलर प्रभावी माध्यम हैं। दवा को सीधे फेफड़ों तक पहुंचाने का सबसे सुरक्षित तरीका है। इन्हेलर से दवा बहुत कम मात्रा में असरदार होती है। टैबलेट या इंजेक्शन की तुलना में इसके साइड इफेक्ट्स कम होते हैं। है
विशेषता | रेस्क्यू इन्हेलर | कंट्रोलर इन्हेलर |
उद्देश्य | तत्काल राहत देना | सूजन कम करके दीर्घकालिक नियंत्रण |
सक्रिय तत्व | ब्रोंकोडायलेटर | स्टेरॉयड |
कब लिया जाता है | सांस फूलने पर | रोजाना, चाहे लक्षण हों या नहीं |
असर की गति | कुछ ही मिनटों में | धीरे-धीरे, लगातार उपयोग पर असर |
जोखिम | अधिक उपयोग से समस्या बिगड़ सकती है | नियमित उपयोग से लक्षण नियंत्रित रहते हैं |
यदि अस्थमा इन्हेलर कोई काम नहीं कर रहा है, तो यह इन्हेलर के अधिक उपयोग की चेतावनी है:
सप्ताह में तीन या अधिक बार रेस्क्यू इन्हेलर का प्रयोगः
अगर आप एक सप्ताह में तीन से ज्यादा बार रेस्क्यू इन्हेलर का उपयोग करते हैं। यह संकेत है कि अस्थमा नियंत्रित नहीं है। यह स्थिति आगे चलकर अस्थमा के अटैक बढ़ाती है।
सांस फूलना, नींद में खांसी, या बार-बार अस्पताल जाना
अगर रात को खांसी या सांस फूलने से नींद टूटती है। यह अस्थमा की बिगड़ने का संकेत है। बार-बार अस्थमा से अस्पताल जाना पर तुरंत इलाज की जरूरत है।
गाइडलाइन के अनुसार इन्हेलर की सुरक्षित सीमाः
गाइडलाइन के मुताबिक रेस्क्यू इन्हेलर का उपयोग सप्ताह में 2 से 3 बार से अधिक नहीं होना चाहिए। कंट्रोलर इन्हेलर का नियमित उपयोग जरूरी है। जिससे रेस्क्यू इन्हेलर की जरूरत कम पड़े। अगर ज्यादा बार रेस्क्यू इन्हेलर लेना पड़ता है, तो नोएडा शहर के प्रमुख डॉक्टर से संपर्क करें।
अस्थमा इन्हेलर अगर डॉक्टर की सलाह के बिना उपयोग हो तो यह नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
हार्ट रेट का बढ़ना और घबराहट:
रेस्क्यू इन्हेलर में पाए जाने वाले ब्रोंकोडायलेटर का अधिक उपयोग दिल की धड़कन बढ़ाता है। इससे घबराहट, बेचैनी और अनिद्रा होता हैं। दिल के मरीज ज्यादा प्रभावित होते हैं।
सांस लेने परेशानीः
अधिक उपयोग के कारण श्वसन नलिकाएं उल्टा प्रतिक्रिया देती हैं। दवा लेने के बाद सांस की नली सिकुड़ती है। इससे सांस लेने में कठिनाई होती है। अस्थमा अटैक गंभीर होता है।
दवा प्रतिरोधकता का बढ़नाः
बार-बार इन्हेलर लेने से शरीर उस दवा के प्रति अभ्यस्त होने लगता है। इससे दवा की प्रभावशीलता कम होती है। रोगी को राहत पाने के लिए ज्यादा मात्रा लेने की जरूरत होती है। यह अस्थमा के बेहतर नियंत्रण में बाधा डालता है।
स्टेरॉयड के साइड इफेक्ट्सः
कंट्रोलर इन्हेलर में पाए जाने वाले स्टेरॉयड का ज्यादा उपयोग दुष्प्रभाव होते हैं। इससे हड्डियों कमजोरी होती है। वजन बढ़ना जैसे लक्षण दिखते हैं । संक्रमण का खतरा बढ़ता है। रक्त शर्करा और दबाव बढ़ता है।
अस्थमा के इलाज (Asthma Treatment) में बनाई गई गाइडलाइन मरीजों और डॉक्टरों दोनों को सबसे प्रभावी और सुरक्षित तरीके से रोग नियंत्रण में सहायक है।
अस्थमा के लिए वैश्विक पहलः
अस्थमा का इलाज केवल लक्षणों को दबाने तक सीमित न रखें। यह फेफड़ों में सूजन को नियंत्रित करना जरूरी होता है। मरीज को दवा का सही और नियमित उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जाना जरूरी होता है। इसके लिए लक्षणों और दवाओं के प्रभाव का नियमित मूल्यांकन किया जाना जरूरी होता है।
स्मार्ट थायरेपी और चरणबद्ध प्रबंधनः
इसमें मरीज एक कंबाइंड इन्हेलर का इस्तेमाल नियमित नियंत्रण के लिए करता है। इससे अस्थमा के दौरे कम होते हैं। इस कारण रेस्क्यू इन्हेलर की जरूरत घटती है।
नियमित समीक्षा और इलाज की रणनीति बदलने की सलाहः
अस्थमा को समझने के लिए नियमित डॉक्टर से जांच और समीक्षा जरूरी है। बार-बार लक्षण हो रहे हों या ज्यादा रेस्क्यू इन्हेलर की जरूरत हो तो डॉक्टर की सलाह ले। इलाज में बदलाव से पहले दवा के सही उपयोग और जीवनशैली में सुधार करें। मरीज को अस्थमा के लक्षण, ट्रिगर्स जैसे एलर्जेन, धुआं और दवाओं के सही तरीके की जानकारी दें।
अस्थमा में इन्हेलर जीवन रक्षक होते हैं। सही और सुरक्षित उपयोग के लिए कुछ जरूरी सावधानियां अपनाना आवश्यक है।
डॉक्टर की सलाह से इन्हेलर का उपयोगः
इन्हेलर का इस्तेमाल केवल डॉक्टर की सलाह और प्रिस्क्रिप्शन के अनुसार करना चाहिए। खुद से दवा की मात्रा बढ़ाना या कम करना हानिकारक होता है। दवा से एलर्जी या साइड इफेक्ट हो तो डॉक्टर से संपर्क करें।
एक्शन प्लान बनवानाः
लक्षण कब खराब होते हैं, कब दवा लेनी है। कब तुरंत डॉक्टर को दिखाना है। यह योजना अस्थमा अटैक में मदद करती है।
स्पेसर का उपयोग और सही तकनीकः
इन्हेलर के साथ स्पेसर का उपयोग से दवा फेफड़ों तक पहुंचती है। इसका सही इस्तेमाल जरूरी है। गलत तरीका दवा के प्रभाव को कम करता है। सही उपयोग की ट्रेनिंग लेना जरूरी होता है।
ट्रैकिंग ऐप्स या डायरी से मॉनिटरिंगः
अस्थमा के लक्षण दवा के उपयोग और अटैक को ट्रैक करने के लिए ऐप्स या डायरी का उपयोग करें। इससे यह समझने में मदद मिलती है कि अस्थमा कब बेहतर है। कब इलाज में बदलाव की जरूरत है।
अस्थमा का प्रबंधन केवल दवाओं तक सीमित नहीं है। सही जीवनशैली से अस्थमा के लक्षण होते हैं।
एलर्जन से बचावः
अस्थमा के अधिकांश अटैक एलर्जन यानी धूल, परागकण, पालतू जानवर के बाल, फफूंदी से होते हैं। घर और कार्यस्थल को साफ रखें। धूल-मिट्टी से बचें। पराग कड़ के मौसम में बाहर जाने से बचें और मास्क पहनें।
व्यायाम और प्राणायाम
हल्का और नियमित व्यायाम यानी तेज चलना, योग फेफड़ों की क्षमता बढ़ाने में मदद करते हैं। प्राणायाम श्वास नियंत्रण अभ्यास सांस की गहराई और सहनशीलता बढ़ाता है।
धूम्रपान से दूरीः
धूम्रपान अस्थमा के लिए नुकसानदेह है। इसलिए धूम्रपान न करें। धूम्रपान करने वालों के करीब न रहें। धुआं अस्थमा को बढ़ाता है।
वजन नियंत्रण और मानसिक तनाव कम करनाः
अधिक वजन फेफड़ों पर दबाव डालता है। सही वजन जरूरी है। मानसिक तनाव और चिंता अस्थमा को बढ़ावा देता है। इसलिए ध्यान, मेडिटेशन और आराम वाली तकनीक अपनाएं। पर्याप्त नींद लेना के साथ सकारात्मक सोच बनाए रखें।
हमसे संपर्क करेंः
अस्थमा का इलाज श्वसन तंत्र से जुड़े डॉक्टर करते हैं। पल्मोनोलॉजिस्ट यानी फेफड़ों के विशेषज्ञ अस्थमा, सीओपीडी, ब्रोंकाइटिस जैसे फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों के विशेषज्ञ होते हैं। मध्यम से गंभीर अस्थमा या बार-बार होने वाले अस्थमा अटैक के मामलों में इनसे सलाह लेना आवश्यक है।
समय पर जांच और इलाज बेहद आवश्यक है। आज ही फेलिक्स हॉस्पिटल्स में संपर्क करें और आज ही अपना अपॉइंटमेंट बुक करें। ज्यादा जानकारी के लिए हमें कॉल करें +91 9667064100.
अस्थमा में इन्हेलर जीवन रक्षक है। सांस न आने पर राहत देता हैं। सही उपयोग सुरक्षित और प्रभावी इलाज की कुंजी है। इसलिए डॉक्टर की निगरानी बहुत है। दवाओं का सही इस्तेमाल लक्षणों पर नजर रखना और इलाज योजना में बदलाव से अच्छे परिणाम मिलते हैं। रोगी और उनके परिवार को चाहिए कि वह डॉक्टर की सलाह का पालन करें। दवाओं का सही उपयोग करें। जीवनशैली में सुधार करें। नोएडा के अच्छे हॉस्पिटल से संपर्क करके कम दाम में इलाज करा सकते हैं।
प्रश्न 1. अस्थमा इन्हेलर क्या हैं यह कैसे काम करते हैं?
उत्तर: इन्हेलर छोटे उपकरण होते हैं। जिनमें दवा होती है। जो सीधे फेफड़ों तक जाती है। यह फेफड़ों की नलिकाओं को खोलने और सूजन कम करते हैं। जिससे सांस लेना आसान होता है।
प्रश्न 2. अधिक इन्हेलर का उपयोग खतरनाक क्यों है?
उत्तर: ज्यादा उपयोग से दवा का असर कम होता है। इससे दिल की धड़कन तेज होती है। घबराहट होती है। सांस की स्थिति बिगड़ती है।
प्रश्न 3. रेस्क्यू इन्हेलर और कंट्रोलर इन्हेलर में क्या फर्क है?
उत्तर: रेस्क्यू इन्हेलर तुरंत राहत देते हैं। जरूरत पड़ने पर उपयोग हैं। कंट्रोलर नियमित रूप से लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए होते हैं। इन्हें रोजाना लेना जरूरी होता है।
प्रश्न 4. पल्मोनोलॉजी गाइडलाइन के अनुसार इन्हेलर का सुरक्षित उपयोग क्या है?
उत्तर: रेस्क्यू इन्हेलर का सप्ताह में 2-3 बार से अधिक उपयोग नहीं करना चाहिए। कंट्रोलर इन्हेलर को रोजाना डॉक्टर की सलाह के अनुसार लेना चाहिए।
प्रश्न 5. अगर ज्यादा बार रेस्क्यू इन्हेलर की जरूरत हो तो क्या करें?
उत्तर: यह अस्थमा का नियंत्रण कमजोर होने का संकेत है। तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। जिससे इलाज की योजना बदली जा सके।
प्रश्न 6. इन्हेलर का सही उपयोग कैसे करें?
उत्तर: डॉक्टर से सही तकनीक सीखें। स्पेसर का उपयोग करें। नियमित रूप से अपने अस्थमा के लक्षण ट्रैक करें।