डिजिटल युग में स्क्रीन का उपयोग हमारी दिनचर्या का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है। स्मार्टफोन, लैपटॉप, टैबलेट और टेलीविजन के अधिक उपयोग ने लोगों की जीवनशैली को बदल दिया है, लेकिन इसके साथ ही इसके नकारात्मक प्रभाव भी सामने आ रहे हैं। स्क्रीन टाइम में वृद्धि के कारण माइग्रेन जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। डिजिटल युग में स्क्रीन टाइम से बचना मुश्किल है, लेकिन इसे नियंत्रित करके माइग्रेन जैसी समस्याओं से बचा जा सकता है। संतुलित तकनीक उपयोग, सही आहार, अच्छी नींद और नियमित व्यायाम से माइग्रेन की संभावना को कम किया जा सकता है। इसलिए स्वस्थ डिजिटल आदतों को अपनाएं और माइग्रेन से बचाव करें!
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माइग्रेन क्या है ? (What is Migraine?)
माइग्रेन एक प्रकार का सिरदर्द है, जो अक्सर तीव्र और आवर्ती होता है। यह कई बार न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर से भी जुड़ा हो सकता है। माइग्रेन एक न्यूरोलॉजिकल (तंत्रिका तंत्र से संबंधित) स्थिति है, जिसमें सिरदर्द की गंभीर और बार-बार होने वाली समस्याएं होती हैं। यह आमतौर पर सिर के एक तरफ तेज़, धड़कता हुआ दर्द होता है, जो घंटों या कई दिनों तक बना रह सकता है।
माइग्रेन की परिभाषा और लक्षण
- तीव्र सिरदर्द: आमतौर पर सिर के एक तरफ तेज, धड़कता हुआ दर्द होता है।
- मतली और उल्टी: माइग्रेन के दौरान पेट खराब हो सकता है और उल्टी हो सकती है।
- प्रकाश और ध्वनि संवेदनशीलता: तेज़ रोशनी और ज़ोर की आवाज़ से तकलीफ बढ़ सकती है।
- धुंधली दृष्टि: कुछ लोगों को माइग्रेन अटैक के दौरान चीज़ें धुंधली दिख सकती हैं।
- मूड स्विंग और थकान: माइग्रेन शुरू होने से पहले या बाद में मूड में बदलाव आ सकता है।
- ऑरा : कुछ लोगों को माइग्रेन से पहले आंखों के आगे चमकती रोशनी या ज़िगज़ैग लाइन्स दिख सकती हैं।
यह साधारण सिरदर्द से कैसे अलग है ?
फीचर | सामान्य सिरदर्द | माइग्रेन |
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प्रकृति | हल्का से मध्यम दर्द | तीव्र, धड़कता हुआ दर्द |
अवधि | कुछ मिनटों से कुछ घंटों तक | 4 से 72 घंटे या उससे अधिक |
स्थिति | पूरे सिर में या किसी खास जगह | अक्सर सिर के एक तरफ |
अन्य लक्षण | आमतौर पर कोई अन्य लक्षण नहीं | मतली, उल्टी, प्रकाश/ध्वनि संवेदनशीलता |
कारण | तनाव, थकान, निर्जलीकरण | न्यूरोलॉजिकल और जेनेटिक कारण |
माइग्रेन के ट्रिगर फैक्टरः
माइग्रेन का कोई एक कारण नहीं होता, लेकिन कई फैक्टर इसे ट्रिगर कर सकते हैं:
मानसिक और शारीरिक तनाव
- अत्यधिक काम का दबाव
- भावनात्मक तनाव
- अत्यधिक चिंता और डिप्रेशन
नींद की कमी या अनियमित नींद
- पर्याप्त नींद न लेना
- बहुत ज्यादा सोना या नींद का पैटर्न बदलना
खानपान से जुड़े कारण
- कैफीन, शराब, चॉकलेट, और प्रोसेस्ड फूड
- भोजन न करना या लंबे समय तक भूखे रहना
- अधिक नमक या मसालेदार भोजन
स्क्रीन एक्सपोजर और पर्यावरणीय कारण
- मोबाइल, कंप्यूटर, टीवी का अधिक उपयोग
- तेज रोशनी या तेज़ आवाज़
- तेज़ धूप या मौसम में अचानक बदलाव
हार्मोनल परिवर्तन (विशेष रूप से महिलाओं में)
- मासिक धर्म के दौरान हार्मोनल बदलाव
- गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन
दवाइयों या गंध से संवेदनशीलता
- कुछ एंटीबायोटिक्स या पेनकिलर माइग्रेन ट्रिगर कर सकते हैं
- तेज गंध जैसे परफ्यूम, धुआं और पेट्रोल की स्मेल
स्क्रीन टाइम और माइग्रेन के बीच संबंध (The Connection Between Screen Time and Migraines)
आज के डिजिटल युग में, मोबाइल, कंप्यूटर और टीवी स्क्रीन का अधिक उपयोग माइग्रेन और सिरदर्द की एक बड़ी वजह बन चुका है। लंबे समय तक स्क्रीन देखने से आँखों और दिमाग पर तनाव बढ़ता है, जिससे माइग्रेन ट्रिगर हो सकता है या पहले से मौजूद माइग्रेन के लक्षण और खराब हो सकते हैं।
स्क्रीन लाइट (ब्लू लाइट) और ब्रेन स्ट्रेन
ब्लू लाइट वह उच्च-ऊर्जा वाली रोशनी है जो डिजिटल स्क्रीन (मोबाइल, लैपटॉप, टीवी, टैबलेट) से निकलती है। यह आंखों और मस्तिष्क को प्रभावित कर सकती है:
- मेलाटोनिन उत्पादन कम करता है, जिससे नींद की समस्या होती है और माइग्रेन ट्रिगर हो सकता है।
- आंखों पर अधिक दबाव डालता है, जिससे आई स्ट्रेन और सिरदर्द बढ़ सकता है।
- मस्तिष्क को ओवरस्टिमुलेट करता है, जिससे ब्रेन स्ट्रेन और माइग्रेन बढ़ने की संभावना रहती है।
डिजिटल आई स्ट्रेन और माइग्रेन
डिजिटल आई स्ट्रेन लगातार माइग्रेन को ट्रिगर कर सकता है, क्योंकि जब आंखें ज्यादा थकती हैं, तो मस्तिष्क पर भी दबाव बढ़ता है।
डिजिटल आई स्ट्रेन (DES) के लक्षण:
- आंखों में जलन या थकान
- धुंधली दृष्टि
- सिरदर्द और माइग्रेन
- आंखों में खुजली या सूखापन
- गर्दन और कंधों में तनाव
लगातार स्क्रीन देखने से मानसिक और शारीरिक तनाव
1. मानसिक तनाव:
- लगातार स्क्रीन देखने से दिमाग को आराम नहीं मिलता, जिससे चिंता और तनाव बढ़ सकता है।
- लगातार मल्टीटास्किंग करने से दिमाग थक जाता है और माइग्रेन ट्रिगर हो सकता है।
2. शारीरिक तनाव:
- स्क्रीन के सामने बैठने से गर्दन, कंधे और पीठ में तनाव बढ़ सकता है।
- गलत पॉस्चर से ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है, जिससे सिरदर्द और माइग्रेन बढ़ सकते हैं।
स्क्रीन ब्राइटनेस, रिफ्रेश रेट और माइग्रेन का प्रभाव
1. स्क्रीन ब्राइटनेस:
- बहुत ज्यादा या बहुत कम ब्राइटनेस आंखों पर ज़ोर डाल सकती है और माइग्रेन को ट्रिगर कर सकती है।
- प्राकृतिक रोशनी के अनुसार ब्राइटनेस एडजस्ट करना बेहतर होता है।
रिफ्रेश रेट:
- कम रिफ्रेश रेट (60Hz से कम) वाली स्क्रीन आंखों पर ज्यादा दबाव डालती है और सिरदर्द बढ़ा सकती है।
- 90Hz या 120Hz रिफ्रेश रेट वाली स्क्रीन बेहतर होती हैं, क्योंकि वे आंखों को कम थकाती हैं।
फ्लिकरिंग और स्क्रीन ग्लेयर:
- स्क्रीन की तेज चमक (ग्लेयर) या झिलमिलाहट (Flicker) माइग्रेन को ट्रिगर कर सकती है।
- एंटी-ग्लेयर स्क्रीन और ब्लू लाइट फिल्टर का उपयोग करना फायदेमंद होता है।
स्क्रीन टाइम कैसे माइग्रेन को बढ़ा सकता है ? (How can Screen Time Worsen Migraines?)
डिजिटल स्क्रीन का अत्यधिक उपयोग माइग्रेन को ट्रिगर कर सकता है या उसके लक्षणों को और बढ़ा सकता है। ब्लू लाइट एक्सपोज़र, आंखों की थकान, नींद की गड़बड़ी, ब्रेन ओवरस्टिमुलेशन और गलत पॉस्चर माइग्रेन के मुख्य कारणों में शामिल हैं।
लगातार स्क्रीन देखने से आंखों की थकान (Digital Eye Strain & Migraine)
जब हम लंबे समय तक बिना ब्रेक लिए मोबाइल, लैपटॉप या टीवी स्क्रीन देखते हैं, तो डिजिटल आई स्ट्रेन (Digital Eye Strain - DES) हो सकता है।
कैसे आंखों की थकान माइग्रेन बढ़ाती है ?
- आंखों की मांसपेशियों पर दबाव बढ़ता है, जिससे सिरदर्द और माइग्रेन ट्रिगर हो सकता है।
- आंखें शुष्क और जलन महसूस करती हैं, जिससे सिरदर्द की तीव्रता बढ़ जाती है।
- आंखों को बार-बार फोकस बदलना पड़ता है, खासकर झिलमिलाती स्क्रीन पर, जिससे माइग्रेन बढ़ सकता है।
- तेज ब्राइटनेस और स्क्रीन ग्लेयर (Screen Glare) आंखों को अधिक थकाता है, जिससे माइग्रेन अटैक की संभावना बढ़ जाती है।
नींद के पैटर्न में गड़बड़ी और माइग्रेन पर असर
स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट मेलाटोनिन हार्मोन (Melatonin) के उत्पादन को बाधित करती है, जिससे नींद की गुणवत्ता खराब होती है।
नींद की कमी कैसे माइग्रेन को बढ़ाती है ?
- मेलाटोनिन की कमी से दिमाग को पर्याप्त आराम नहीं मिलता, जिससे माइग्रेन ट्रिगर हो सकता है।
- नींद की गड़बड़ी ब्रेन स्ट्रेस को बढ़ाती है, जिससे सिरदर्द की तीव्रता अधिक हो सकती है।
- नींद पूरी न होने से शरीर में सूजन बढ़ती है, जिससे माइग्रेन ज्यादा गंभीर हो सकता है।
झिलमिलाती स्क्रीन और ब्रेन ओवरस्टिमुलेशन (Flickering Screens & Brain Overstimulation)
कुछ डिजिटल स्क्रीन, खासकर कम रिफ्रेश रेट (60Hz से कम) वाले डिवाइस, लगातार झिलमिलाते (Flicker) रहते हैं। यह माइग्रेन के रोगियों के लिए हानिकारक हो सकता है।
कैसे ब्रेन ओवरस्टिमुलेशन माइग्रेन को बढ़ाता है ?
- झिलमिलाती स्क्रीन ब्रेन वेव्स को डिस्टर्ब करती है, जिससे माइग्रेन ट्रिगर हो सकता है।
- तेज रोशनी और चलती हुई इमेज मस्तिष्क को ओवरलोड कर सकती हैं।
- बहुत ज्यादा स्क्रीन एक्सपोज़र से न्यूरोलॉजिकल थकान बढ़ती है, जिससे
- सिरदर्द और माइग्रेन के अटैक तेज़ हो सकते हैं।
बैठने की गलत मुद्रा (Poor Posture) और माइग्रेन पर प्रभाव
स्क्रीन देखने के दौरान गलत पॉस्चर भी माइग्रेन को ट्रिगर कर सकता है।
गलत मुद्रा माइग्रेन कैसे बढ़ाती है ?
- जब हम स्क्रीन की ओर झुकते हैं, तो गर्दन और कंधों पर दबाव बढ़ता है, जिससे सिरदर्द और माइग्रेन हो सकता है।
- ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है, जिससे ब्रेन को सही मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिलती और माइग्रेन अटैक आ सकता है।
- स्पाइन और मांसपेशियों पर तनाव बढ़ता है, जिससे सिर के पिछले हिस्से (Occipital Region) में दर्द बढ़ सकता है।
स्क्रीन टाइम से माइग्रेन को कैसे कम करें ? (How to Reduce Migraine from Screen Time?)
अगर आपको ज्यादा स्क्रीन देखने से सिरदर्द या माइग्रेन की समस्या होती है, तो कुछ आसान उपाय अपनाकर इसे कम किया जा सकता है। ब्लू लाइट कंट्रोल, स्क्रीन ब्राइटनेस एडजस्टमेंट, शारीरिक गतिविधियाँ और हाइड्रेशन माइग्रेन के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकते हैं।
20-20-20 नियम अपनाएं
- हर 20 मिनट में, 20 फीट दूर की किसी वस्तु को 20 सेकंड तक देखें।
- यह नियम आंखों की थकान को कम करने में मदद करता है और ब्रेन ओवरस्टिमुलेशन से बचाता है। लंबे समय तक स्क्रीन देखने से बचने के लिए हर घंटे 5-10 मिनट का ब्रेक लें।
- प्रैक्टिकल टिप स्क्रीन पर टाइमर सेट करें, ताकि आपको ब्रेक लेने की याद दिलाई जा सके।
2. ब्लू लाइट फिल्टर और एंटी-ग्लेयर स्क्रीन का उपयोग करें
- मोबाइल, लैपटॉप और टैबलेट में ब्लू लाइट फिल्टर ऑन करें या "नाइट मोड" का उपयोग करें।
- ब्लू लाइट रेडक्शन ऐप्स जैसे, f.lux, नाइट लाइट, ट्वाइलाइट का इस्तेमाल करें।
- ब्लू लाइट कट लेंस वाले चश्मे पहनें, खासकर अगर आपको रोज़ाना लंबे समय तक स्क्रीन देखनी पड़ती है।
एंटी-ग्लेयर स्क्रीन:
- एंटी-ग्लेयर स्क्रीन गार्ड लगाएं, ताकि स्क्रीन से आने वाले रिफ्लेक्शन और ब्राइटनेस को कम किया जा सके।
- कमरे में पर्याप्त रोशनी रखें ताकि आंखों पर अधिक दबाव न पड़े।
नेचुरल लाइट में ब्रेक लें और पलकें झपकाएं
- दिन में कुछ समय खिड़की के पास बैठें या बाहर टहलें, ताकि आंखों को प्राकृतिक रोशनी मिले।
- कृत्रिम रोशनी की जगह सॉफ़्ट वॉर्म लाइट का उपयोग करें।
आंखों को आराम दें:
- पलकें झपकाने की आदत डालें (हर 5-10 सेकंड में), ताकि आंखें सूखें नहीं।
- अगर आंखों में जलन हो रही है, तो ठंडे पानी से धोएं या आई ड्रॉप्स का इस्तेमाल करें।
- स्क्रीन देखने के दौरान "ब्लिंक रिमाइंडर" ऐप का उपयोग करें, ताकि आपको पलकें झपकाने की याद रहे।
सही स्क्रीन ब्राइटनेस और कंट्रास्ट सेट करें
- स्क्रीन ब्राइटनेस को ऑटो-एडजस्ट या कमरे की रोशनी के अनुसार सेट करें।
- बहुत ज्यादा ब्राइट या बहुत डिम स्क्रीन आंखों पर दबाव डाल सकती है, जिससे माइग्रेन बढ़ सकता है।
- वाइट बैकग्राउंड की जगह डार्क मोड (डार्क मोड) का उपयोग करें, खासकर रात में।
- रिफ्रेश रेट: 90Hz या 120Hz स्क्रीन चुनें, ताकि झिलमिलाहट कम हो।
- फॉन्ट साइज: स्क्रीन पर पढ़ते समय फॉन्ट बड़ा करें, ताकि आंखों पर तनाव कम हो।
हाइड्रेशन और सही पोषण बनाए रखेंः
- डिहाइड्रेशन माइग्रेन के सबसे आम कारणों में से एक है।
- हर दिन 8-10 गिलास पानी पीना सुनिश्चित करें, खासकर अगर आप लंबे समय तक स्क्रीन पर काम करते हैं।
सही खानपान अपनाएं:
- ज्यादा कैफीन (चाय, कॉफी, एनर्जी ड्रिंक) से बचें, क्योंकि यह माइग्रेन को ट्रिगर कर सकता है।
- डाइट में मैग्नीशियम और ओमेगा-3 युक्त खाद्य पदार्थ (बादाम, अखरोट, मछली, पालक) शामिल करें।
- ज्यादा प्रोसेस्ड फूड और मीठे पेय पदार्थों से बचें, क्योंकि ये ब्रेन ओवरस्टिमुलेशन को बढ़ा सकते हैं।
प्रैक्टिकल टिप:
- नींबू पानी या हर्बल टी पीएं, ताकि शरीर हाइड्रेटेड रहे और माइग्रेन कम हो।
- शारीरिक गतिविधियों और व्यायाम को दिनचर्या में शामिल करें
एक्टिव रहें:
- दिनभर बैठकर काम करने की बजाय हर 30-40 मिनट में उठकर हल्की स्ट्रेचिंग करें।
- योग और ध्यान माइग्रेन को कंट्रोल करने में बहुत प्रभावी होते हैं।
- गर्दन और कंधों की एक्सरसाइज़ करें, ताकि से बचा जा सके।
तनाव कम करें:
- डीप ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ (गहरी सांस लेना) माइग्रेन को कम कर सकती है।
- नियमित रूप से 7-8 घंटे की नींद लें और स्क्रीन के कारण होने वाले स्ट्रेस को कम करने के लिए मेडिटेशन करें।
प्रैक्टिकल टिप:
10 मिनट का सनलाइट ब्रेक लें, ताकि माइग्रेन का खतरा कम हो और विटामिन डी भी मिले।
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निष्कर्ष (conclusion)
आज के डिजिटल युग में स्क्रीन का उपयोग अनिवार्य हो गया है, लेकिन अत्यधिक स्क्रीन एक्सपोज़र माइग्रेन, तनाव, आंखों की थकान और नींद की गड़बड़ी का कारण बन सकता है। इसलिए, संतुलित स्क्रीन उपयोग सेहत बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी है। संतुलित स्क्रीन उपयोग न केवल माइग्रेन को रोकने में मदद करता है, बल्कि मानसिक और शारीरिक सेहत को भी बनाए रखता है। डिजिटल आदतों में छोटे-छोटे बदलाव करके, हम टेक्नोलॉजी का लाभ उठा सकते हैं, बिना अपनी सेहत को नुकसान पहुंचाए। टेक्नोलॉजी का बुद्धिमानी से उपयोग करें और डिजिटल हेल्थ को प्राथमिकता दें। आपने स्क्रीन टाइम को संतुलित करने के लिए कौन-से तरीके अपनाए हैं।
स्क्रीन टाइम आदत से होने वाले माइग्रेन को लेकर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न और उनके उत्तर (FAQs)
प्रश्न 1- क्या स्क्रीन टाइम माइग्रेन को ट्रिगर कर सकता है?
उत्तरः हां, कर सकता है। लंबे समय तक स्क्रीन देखने से आंखों की थकान, ब्रेन ओवरस्टिमुलेशन, नींद की गड़बड़ी और खराब बॉडी पॉश्चर हो सकता है, जिससे माइग्रेन का खतरा बढ़ जाता है।
प्रश्न 2-ब्लू लाइट माइग्रेन को क्यों बढ़ाता है?
उत्तरः ब्लू लाइट मेलाटोनिन हार्मोन (जो नींद को नियंत्रित करता है) के उत्पादन को रोकता है, जिससे नींद की गुणवत्ता खराब होती है। यह आंखों की थकान बढ़ाकर ब्रेन स्ट्रेन और माइग्रेन को ट्रिगर कर सकता है।
प्रश्न 3- क्या मोबाइल स्क्रीन की तुलना में कंप्यूटर स्क्रीन ज्यादा नुकसानदायक होती है?
उत्तरः लगातार नीचे देखने से गर्दन और पीठ पर अधिक दबाव पड़ता है। छोटी स्क्रीन पर पढ़ने के लिए ज्यादा फोकस करना पड़ता है, जिससे आंखों की थकान जल्दी होती है।
प्रश्न 4- क्या डार्क मोड माइग्रेन के लिए फायदेमंद है?
उत्तरः हां, डार्क मोड आंखों पर तनाव कम करता है, खासकर रात में। लेकिन कुछ लोगों को डार्क मोड में सफ़ेद टेक्स्ट देखने में दिक्कत हो सकती है, जिससे आंखों पर और ज्यादा दबाव पड़ सकता है।
प्रश्न 5-क्या ब्लू लाइट ब्लॉकर चश्मा माइग्रेन से बचाने में मदद कर सकता है?
उत्तरः हां, ब्लू लाइट कट लेंस या ब्लू लाइट ब्लॉकर चश्मा पहनने से माइग्रेन ट्रिगर होने की संभावना कम हो सकती है। यह खासकर उन लोगों के लिए फायदेमंद होता है, जो रोज़ाना 8-10 घंटे स्क्रीन पर काम करते हैं।
प्रश्न 6- स्क्रीन टाइम कम करने का सबसे आसान तरीका क्या है?
उत्तरः डिजिटल डिटॉक्स करें। अनावश्यक सोशल मीडिया स्क्रॉलिंग कम करें। कोई स्क्रीन टाइम नहीं ब्रेक सेट करें। स्क्रीन टाइम ट्रैकिंग ऐप्स जैसेडिजिटल वेलबीइंग, स्टेफ्री का उपयोग करें। पढ़ने और नोट्स बनाने के लिए पेपर और पेन का इस्तेमाल करें।
प्रश्न 7- क्या रोजाना स्क्रीन देखने वाले लोग माइग्रेन से बच सकते हैं ?
उत्तरः हां, अगर संतुलित स्क्रीन उपयोग और हेल्दी डिजिटल आदतें अपनाई जाएं, तो माइग्रेन से बचा जा सकता है। सही ब्रेक्स, ब्लू लाइट कंट्रोल, स्क्रीन ब्राइटनेस एडजस्टमेंट और अच्छी नींद माइग्रेन को कम करने में मदद कर सकते हैं।